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________________ SSS जैन-गौरव-स्मृतियां * कलिङ्ग से पाटलिपुत्र : उठा ले गया था उसे खारवेल पुनः कलिंग में ले आये, और साथ ही साथ मगध की विपुल द्रव्यराशि भी कलिंग में ले आये। इस प्रकार उन्होंने मगध से पुराना बदला लिया। उनका राज्य नर्मदा और महानंदी से कृष्णा तक फैल गया था । उत्तरापक्ष से लेकर पाण्ड्य चेल देशों तक उनकी पताका उड़ थी। विदेशी शासक डेमिट्रियस भी इनके प्रताप से डरकर भाग खड़ा हुआ । स्वर्गपुर की गुफा से जो शिलालेख प्राप्त हुआ है उसमें खारवेलो सार्वभौम चक्रवर्ती कहा गया है। सम्राट् खारवेल ने जो शौर्य अपने राज्य-विस्तार में प्रकट किया वही उन्होंने धर्म विस्तार में भी दिखलाया । उनके लेख से ही यह प्रकट होता है। नं०१४-१५-१६-१७ उनके धार्मिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं अंतः उनका भाषानुवाद यहाँ उद्धृत किया जाता है : ... (१४).........सियों को वश में किया। तेरहवें वर्ष में पवित्र कुमारीक पर्वत पर जहाँ (जैनधर्म का ) विजयचक्र सुप्रवृत्त है, प्रक्षीणसंसृति (जन्ममरण से अतीत ) कायनिषीदी (स्तूप) पर ( रहने वाले ) पाप बताने वालों (पापज्ञापकों ) के लिए व्रत पूरा हो जाने के बाद मिलने वाली राजवृतियाँ कायम कर दी । पूजा में रत उपासक खारवेल ने जीव और शरीर की श्री की परीक्षा कर ली ( जीव और शरीर का भेद जानलिया )। (१५.).........सुकृतिश्रमण सुविहित शत दिशाओं के ज्ञानी, तपस्वी ऋषि संघी लोगों का.........अरिहंत की निषीदी के पास, पहाड़ पर उत्तम स्थानों से निकल कर लाये हुए, अनेक योजनों से लाये गये...... सिंहप्रस्थवाली रानी सिन्धुला के लिए निश्चयं............(१६)......... घंटयुक्त (०) वैडूर्यरत्न वाले वाले स्तम्भ स्थापित किये पचहत्तर लाख के (खर्च) से । मौर्यकाल में उच्छिन्न चोसहि (चौसठ अध्याय वाले) अंगसप्तिक के चतुर्थ भाग को पुन तय्यार करवाया । यह क्षेमराज, वृद्धिराज, भिक्षुराज धर्मराज, कल्याण देखते-सुनते और अनुभव करते। . kikokokakakakaks.३.२८)Karkikeko kakake ke . . . . .* यह खण्डगिरि-उदयागिरि का नाम है जहाँ यह लेख है। . . .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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