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________________ < जैन-गौरव-स्मृतियां भावना का परिणाम है। परम्परागत जैनधर्मानुयायी होने पर भी जैन सम्प्रदाय तक सीमित न रहकर उसने तत्कालीन सव धर्मों का आदर किया । ब्राह्मण, बौद्ध, आजीविक, जैन आदि सब धर्मों के साथ उसने सम्पर्क स्थापित किया और सब धर्म वालों को सुविधाएं प्रदान की । दिल्ली के स्तम्भ पर अंकित उसकी आज्ञा को पढ़ने से मालूम होता है कि उसने अपने महात्माओं को आदेश दिया है कि वे सब धर्मवालों की देखरेख-रक्खें और उन्हें : सुविधाएँ प्रदान करें। एक शिलालेख में अशोक ने लिखाया है कि मैने सन सम्प्रदायों का विविधप्रकार से सत्कार किया है। . ... .. .... इस प्रकार वह अपने जीवन के उत्तरकाल में इतना उदार हो गया था कि उसे किसी भी सम्प्रदाय का नहीं माना जा सकता है । वह सम्प्रदाय से ऊपर उठकर अहिंसा और मानवहित के कार्यों का व्यापक प्रचार करना चाहता था । वह अपने इस महान कार्य में बहुत कुछ सफल हुआ है। अशोक के द्वारा प्रचारित अहिंसा और अन्य बहुमूल्य शिक्षाएँ जैनधर्म के सिद्धान्तों के अनुकूल हैं, इसका कारण यही है कि वह परम्परागत जैनधर्मानुयायी था। कुछ भी हो, अपने इस धर्म-प्रचार के अनूठे कार्य के' कारण वह सबका प्रिय वनगया और प्रियदर्शी की सार्थक उपाधि उपार्जित की। इस दृष्टि से अशोक का महत्त्व विश्व के आधुनिक इतिहास में अनुपम इसमें कोई सन्देह नहीं कि धर्मविजय अहिंसाधर्म की विजय है। इस सम्बन्ध में विशेष जानने के लिए वावू कामताप्रसाद जैन का "जैनधर्म । और सम्राट अशोक" नामक निबन्ध पठनीय है । इस छोटे से प्रकरण में भी उक्त निबन्ध के आधार पर यत्किञ्चित् प्रकाश डाला गया है। सच पूछा जाय तो यह विपय अत्यन्त महत्त्व का है अतः इसके सम्बन्ध में और भी निष्पक्ष अन्वेषण की आवश्यकता है। जैनविद्वानों और श्रीमन्तों का यह कर्त्तव्य है कि वे ऐतिहासिक अन्वेपण की ओर विशेष रूप से ध्यान दें। जैनसम्प्रदाय की उपेक्षा, साहित्यसृजन व प्रकाशन की मंदरुचि और व्यापक प्रचारयोजना के अभाव के कारण उसे कई . Hoksksksksksks ( ३२४) Kokkkkkkk , * छठे स्तम्भ लेख में ! .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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