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________________ ><><>★ जैन - गौरव स्मृतियाँ ★ ए ने अशोक को बौद्ध नहीं माना है । प्रो० कर्न जैसे बौद्धधर्म के प्रखर विद्वान् अशोक का जैन होना बहुत कुछ सम्भव मानते हैं । उन्होंने लिखा है -: His ( Asoka's )' ordinances concerning the sparing of animal life agree much more closely with the ideas of heretical Jain than those ofthe Buddhists ( Indian Anti, Vo. P. 5. 205)s अर्थात् — अशोक की जीवरक्षा सम्बन्धी आज्ञाएँ बौद्धों की अपेक्षा जैनों की शिक्षाओं से अधिक मिलती है । वस्तुतः अशोक ने अपने शासनकाल में पशुओं की रक्षा के प्रति पर्याप्त ध्यान दिया है । म बुद्ध के समय में मांसभोजन का प्रचार अधिक था किन्तु अशोक ने यज्ञादि धार्मिक कार्यों के साथ २ भोजन के लिए भी पशुहिंसा बन्द दी थी। शिकार खेलने पर उसने प्रतिबन्ध लगा दिया था। प्रीति भोज और उत्सवों में भी कोई मांस नहीं परोस सकता था। घोड़ों, बैलों, और बकरों को बधिया करना भी उसने बन्द करा दिया था। पशुओं दङ्ग से किया की रक्षा और चिकित्सा का प्रबन्ध भी उसने पिंजरापोल के था। जैनों की तरह उसने कई बार अमारिघोष कराया था । अशोक का यह पशुओं की रक्षा के प्रति दिया गया ध्यान उसके जैनत्व को सिद्ध करता है । बौद्धधर्म में पशुरक्षण पर इतना अधिक भार नहीं दिया गया है जितना कि अशोक ने दिया है । इसीलिए कर्न महोदय ने उक्त मन्तव्य प्रकट किया है । - मि. टॉमस ने जोरदार शब्दों में अशोक को जैनधर्मानुयायी बताया है । वह अशोक को उसके राजकाल के २७ वें वर्ष तक जैनधर्मानुयायी ही प्रकट करते हैं। उनका मत है कि अशोक के शासन प्रबन्ध में और शिलालेखों में बौद्धधर्म की कोई भी खास बात नहीं है १ । मि. राइस २ और प्राच्य (३२१) १ जनरल रा, ऐ, सो. १६०६ ० ४६१-४६२ २ अशोक, पू० अलीहिस्ट्री ऑफ बंगाल पृ० २१४ | जनरल ग्रॉफ दी मीथिक सोसाइटी, मा १७ १० १७२-२५३ ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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