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________________ * जनगौरव-स्मृतियां प्रतिभक्ति रखते थे । इन के पुत्र अशोक तथा उसके पौत्र सम्प्रति के शासन - काल में जैनधर्म की खूब उन्नति हुई। मौर्यकाल के अन्त समय तक मगध... के राजवंश में जैनधर्म की प्रधानता रही। . . . ... ... ... . . ___ भारतीय इतिहास में अशोक अपने महान व्यक्तित्व के कारण । "अशोक महान" के रूप में सुविख्यात है। मौर्यवंश का यह सम्राट अपने पितामह सम्राट् चन्द्रगुप्त के समान ही परमप्रतापी, समाट अशोक का महातेजस्वी, दूरदर्शी और प्रियदर्शी था । इसने अपनी - जैनत्त्व. ... शूरवीरता के द्वारा. मगधसाम्राज्य का खूब विस्तार किया. ....... था। अपने साम्राज्य की सीमा का विस्तारक होने में अशोक की जिसनी महत्ता है उससे कहीं अधिक महत्ता उसके धर्मप्रचारक होने के कारण है। अशोक की महत्ता और विशेषता यही है कि वह राजनीति में दूरदर्शी होने के साथ ही साथ 'देवना प्रिय पियदंसी के रूप में विश्व विख्यात हुआ। अशोक अपने पूर्वज चन्द्रगुप्त और बिन्दुसार की तरह जैनधर्मानुयायी सम्राट् था। अशोक के सम्बन्ध में आमतौर पर यह धारणा फैली हुई है कि वह बौद्धमतानुयायी था और उसने भारत और विदेशों में बौद्धधर्म का प्रचार किया था। परन्तु बौद्धग्रन्थों के अतिरिक्त इस बात का समर्थन करने वाले . पुष्ट-प्रमाणों का अभाव है। केवल बौद्धग्रन्थों, स्तूपों और अन्य बौद्ध सामग्री के आधार पर ही विद्वानों ने अपना यह निर्णय बांध लिया है, परन्तु यदि अधिक गहराई में जाकर देखें और ऐतिहासिक तथ्यों की शोध में कृतभूरि . परिश्नम पुरातत्वज्ञों की सम्मतियाँ मालूम करें तो ऐसी कई बातों पर नवीन . ही प्रकाश पड़ता हुश्रा प्रतीत होगा । भारतीय इतिहास. की ऐसी कई बातें हैं जो कुछ और रूप में प्रचलित हैं और जिनका वास्तविक रूप कुछ . और ही है। ज्यों ज्यों पुरातत्त्वरसिक निष्पक्षविद्वान् प्राचीन शिलालेखां और प्रमाणों की शोध करते जा रहे हैं त्यो त्यों नवीनसत्य प्रकाश में आते जा रहे हैं। अशोक को बौद्ध मतानुयायी मानने की धारणा भी ऐप्ती.धारणा है जिसका कोई पुष्ट आधार नही है। .... ..... .... कतिपय ऐतिहासिक विद्वानों ने अशोक के बौद्धत्व को अस्वीकार . किया है। डा. फ्लीट १, प्रो. मैकफैल २, मि मोनहन ३, और मि, हेरस ४. hkkkakenkiskek(३२०) KKHEkkkekakke
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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