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________________ * जैन गौरव स्मृतियाँ __ और उनका परिष्कार : . आधुनिक विज्ञान के आचार्यों और प्राध्यापकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अपेक्षावाद ( The doctrine.of Relativity ) से ही वस्तु का स्वरुप यथार्थरूप से जाना जा सकता है । इससे यह सिद्ध होता है कि स्यावाद का सिद्धान्त वैज्ञानिक सत्य है और इस सिद्धान्त का उपदेष्टा जैनधर्म विश्वधर्म और वैज्ञानिकधर्म है। जैनधर्म के इस स्याद्वाद सिद्धान्त के व्यावहारिक रूप द्वारा संसार प्रगति के पथ पर प्रयाण कर सकता है। ... ...जैनधर्म के विषय में भ्रान्त मान्यताएं ___... ... ... . और उनका परिष्कार जैनधर्म और उसके सिद्धान्तों के विषय में भारतीय और यूरोपीय अजैन वर्ग में कतिपय गलत धारणाएँ घर किये हुई हैं । आज से कुछ दायकों पूर्व तो अजैन जगत् में बहुत ही अधिक गलतफहमियाँ इस सम्बन्ध में थीं, परन्तु कुछ निष्पक्ष और गहन अभ्यासी विद्वानों के गवेषणा पूर्ण सत्प्रयत्नों से बहुत सी भ्रान्तियों का निराकरण हो गया है । डाक्टर हर्मन जेकोबी महोदय ने जैनधर्म के विषय में कतिपय तथ्यपूर्ण तत्वों का उद्घाटन किया जिसके कारण कतिपय भ्रमणाएँ दूर होगई हैं। .... ___ अजैन पाश्चात्य विद्वानों. को जैनधर्म के सम्बन्ध में जो भ्रम हुआ इसका कारण यह है कि उन्होंने जैनधर्म के विषय में उसके मूलग्रन्थों या जैनाचार्यों से कुछ न लेकर ब्राह्मणग्रन्थों के आधार पर से ही अपना अभिप्राय बाँध लिया। जैनधर्म ने ब्राह्मणधर्म की यज्ञ. यागादि हिंसक प्रवृत्तियों का और उसकी जातिगत श्रेष्ठता का सदा से विरोध किया है इसलिए ब्राह्मणधर्मानुयायी जैनधर्म को अपना प्रतिद्वन्द्वी मानते आये हैं इसलिए उन्होने अपने ग्रन्थों में जैनधर्म और उसके सिद्धान्तों को विकृत रूप में चित्रित किया है । उस विकृत चित्रण के आधार पर ही ऊपर-ऊपर से ज्ञान करने वाले कई यूरोपीय लेखकों ने जैनधर्म के सम्बन्ध में गलत विचार बना लिये और वहीं उन्होंने अपने लेखों में व्यक्त किये। केवल दूसरे को दोष - देने से ही काम नहीं चल सकता है; सत्य तो यह है कि जैनधर्म के आचार्यों विद्वानों ने ब्राह्मण और बौद्धधर्म की तरह अपने सिद्धान्तों के प्रचार की '
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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