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________________ Siesel जैन-गौरव-स्मृतियां *Sess उस विषय की इच्छा नहीं हो सकती। उसी दिनका पैदा हुआ.बालक माता के स्तन-पान की इच्छा करता है। यदि उसने पहले स्तन-पान न किया होता...तो उसे. यह अभिलाषा नहीं हो सकती। नवीन बालक को स्तन-पान की इच्छा होती है इससे विदित होता है कि उसने पहले भी माता के स्तन का पान किया है। इससे जीव का परलोक से आना सिद्ध होताहै। .. . .. .. .. ऊपर दिया हुआ चित्र का दृष्टान्त संगतः नहीं है क्योंकि वह वैषम्य युक्त दृष्टान्त है। चित्र अंचेतन है अतः वह स्वयं गमनागमन नहीं कर सकता है । आत्मा तो सचेतन है वह गमनागमन कर सकता है । जिस प्रकार एक व्यक्ति एक गांव में कुछ दिन रहने पर दूसरे गांव में जाकर रह सकता है इसी तरह आत्मा भी एक शरीर में अमुक काल तक रह कर फिर दूसरे शरीर में आ-जा सकती है। ... . . . ....... (३) विश्व में पाया जाने वाला वैषम्य भी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म .. को सिद्ध करता है। इस जगत् में कोई प्रकाण्ड, पण्डित है तो,कोई मूर्खशिरोमणि । कोई अपार.ऐश्वर्य का स्वामी है. तो कोई दर-दर का भिखार। कोई राजा है और कोई रंक, कोई रूप का भण्डार है तो कोई कुरुप, कोई सुन्दर स्वास्थ्य का आनन्द ले रहा है तो कोई रोगों का घर बना हुआ है . कोई ऊँचे २ प्रासादों में विलासमय अठखेलियों में लीन है तो किसी को फूस की झोंपड़ी भी नहीं मिलती। दुनिया का यह वैपस्य क्यों है ? बिना कारण तो कोई कार्य होता नहीं, अतः इसका कारण है पूर्वकृत पुण्य और पाप । संसार में ऐसा भी देखा जाता है कि एक व्यक्ति बहुत धर्मात्मा है तदपि वह दुःखी है और एक पापात्मा पाप करते हुए भी सुखी है । धर्म का फल दुःख और पाप को फल सुख तो कभी हो ही नहीं सकता अतः यह सहज सिद्ध होता है कि धर्मात्मा प्राणी धर्म करते हुए भी पूर्व जन्मकृत पाप के कारण सुखी है। यह भी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का प्रमाण है। ,.: (४) गर्भस्थ प्राणी को सुख-दुःख होना भी पूर्वजन्म को सिद्ध करता _है। क्योंकि गर्भ में तो उसने कोई पापकर्म या पुण्यकर्म नहीं किया, तो उसके सुख-दुःख का कारण क्या हो सकता है? साता पिता उसके सुख-दुःख D के कारण नहीं हो सकते क्योंकि माता पिता के कार्यों का फल उसे भोगना N ARVINVAR SENANTA 4Nov A e
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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