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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां * मुक्त अवस्था में न आकार है, न वर्ण हैं, न गन्ध है, न स्पर्श है अतएव वह अवाच्य है । वह शुद्ध चैतन्य रूप, ज्योतिर्मय और सहजानन्द में लीन है। मुक्त अवस्था में जीव सकल कर्म कलंक से रहित होता है अतएव वह एकरूप होता है। अथवा सब मुक्तात्माएँ समान होने से गुण सामान्य नय की विवक्षा से एक कहे जाते हैं। सब मुक्तात्मा ज्योति में ज्योति की तरह मिले हुए हैं इस अपेक्षा से वे एक भी कहे गये हैं। इस दृष्टिकोण से जैनदर्शन को एकेश्वरवादी भी कहा जा सकता है। 'अप्रतिष्ठानश्वेदज्ञ' शब्द उक्त सूत्र में आया है। इसका अर्थ टीकाकार ने 'मोक्षस्वरूप के ज्ञाता' किया है। जहां शरीर और कर्म न हो वह अप्रतिष्ठान, इस व्युत्पत्ति से यह अर्थ किया गया है। 'अप्रतिष्ठान' नामक नरक भी है। वह लोक के अधोभाग की सीमा है। उसके ज्ञाता अर्थात् समस्त लोकनाड़ी के स्वरूप के ज्ञाता हैं । दोनों ही अर्थों से यह प्रकट होता है कि सिद्ध आत्मा सम्पूर्ण ज्ञान मय हैं । वह सिद्धात्मा लोकान्त के एक कोस के छठे भाग क्षेत्र में अनन्त ज्ञान, दर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व अव्याबाध सुख, अमूर्त, अगुरुलचु, अटल, अवगाहना और अनन्त वीर्य इन आठ गुणों से युक्त होकर शाश्वत रूप से रहते हैं। शब्द, कल्पना, बुद्धि और तर्क की वहाँ गति नहीं है। इसका कारण यह है कि वहाँ संस्थान-आकार नहीं है । मुक्त जीव न वड़ा है, न छोटा है, न गोल है, न त्रिकोण है, न चौरस है । वह वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से रहित है । अर्थात् अमूर्त है । 'न काऊ' कह कर यह बताया है कि मुक्त जीव शरीररहित है। वेदान्त वादी कहते हैं कि - " एक एव मुक्तात्मा तत्कायमपरे क्षीण क्लेशाः अनुप्रविशन्ति आदित्यरश्मयः इवांशमन्नः" । जैसे सूर्य की किरणें सूर्य में प्रविष्ट हो जाती हैं उसी तरह एक मुक्तात्मा के शरीर में दूसरे मुक्त होने वाले जीव प्रविष्ट हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वेदान्त में मुक्तात्मा के शरीर होना माना गया है । वस्तुतः मुक्तात्मा देहरहित है । देह एक उपाधि है और मुक्त जीव उपाधि रहित हैं अतएव वह सशरीर नहीं हो सकते। - मुक्त जीव पुनर्जन्मा नहीं है । उनके कर्म रूपी वीज दग्ध हो चुके MARAT AVANI L 2Y PATEL
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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