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________________ IS जैन-गौरव-स्मृतियां* करना अथवा अल्पवय वाली स्वस्त्री के साथ विषय-सेवन करना (२.) जिसके साथ अभी तक विवाह नहीं हुआ है. केवल सगाई हुई ऐसी स्त्री के साथ विषय सेवन करना अथवा परस्त्री, अपरिणिता या वेश्या के साथ सम्भोग : करना (३) अप्राकृतिक सम्भोग करना (४) लग्न करा देना या जातीय सम्बन्ध स्थापित करा देना (५) कामभोग की सीव्र अभिलाषा करना। . ब्रह्मचर्य की निर्मल आराधना के लिए त्यागी और गृहस्थ साधक को अपने आहार-विहार में सावधानी रखनी चाहिए। उसे ऐसा आहार कदापि नहीं करना चाहिए जो विषयविकारों को उत्तेजित करने वाला हो । आहर का विचार के साथ घनिष्ट सम्बन्ध होता है । आहार सात्विक होता है तो विचार भी प्रायः सात्विक होते हैं और आहार यदि तामसिक होता है. तो वह विचारों को भी तामसिक बना देता है । इसलिए ब्रह्मचारी साधक मद्य, मांस, मादक और विषयों के उत्तेजित करने वाली औषधियों का सेवन नहीं करता . है। वह सात्विक आहार करता है और अपने विचारों को सदा पवित्र रखता । है। विषय वासना की उत्पत्ति संकल्पों से होती है इसलिए मन में कभी बुरे विचार न लाना चाहिए। विषय विकारों को उत्तेजित करने वाले वातावरण से दूर रहना चाहिए। किसी पर स्त्री को बुरी नजर से न देखना चाहिए। यथा सम्भव स्त्री संसर्ग से दूर रहना चाहिए। - कामुकता हिंसा है, अपराध है, आत्मा को अवनंत करने वाली है। इसलिए आत्म विकास की अभिलाषी आत्मा इससे सदा बचकर रहती है। विषय वासना से बचकर आत्मा में रमण करने के लिए इस व्रत की अत्यन्त . आवश्यकता है । यह चतुर्थ व्रत है। . अपरिग्रह का जैन श्रादर्श . . परिग्रह वह भयंकर ग्रह है जिसने समस्त संसार को बुरी तरह पकड़ रक्खा है । यह वह भयंकर वन्धन है जिसमें सारी दुनियां बँधकर परेशान हो रही है। आत्मिक और विश्वशान्ति के लिए यह अत्यन्त घातक तत्व है। इसलिए जैनधर्म ने आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अपरिग्रह को व्रतों में मुख्य स्थान दिया है। जैनधर्म के अपरिग्रह का श्रादर्श अत्यन्त भव्य
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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