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________________ अध्ययन ५ उ. १ गा. ७३-७४-फलप्रकरणे त्याज्यफलनामानि ४६५ छाया-वष्ठिकं पुद्गलम् , अनिमिषं वा बहुकण्टकम् । अक्षीवं तिन्दुकं विल्वम् , इक्षुखण्डं वा शाल्मलिम् ॥७३॥ अल्पं स्याभोजनजातं, बहूज्झनधर्मिकम् । ददती प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम् ॥७४॥ सान्वयार्थः-बहुअद्वियं-बहुवीजा अर्थात् सीताफल अणिमिसं-अनन्नास बहुकंटयंपनस-कटहल अच्छियं-शोभाञ्जनकी फली, जो 'मुनगा' नामसे प्रसिद्ध है। तिदुयं-तेन्दु विलंबेल सिंबलिं-सेमल इन नामके पुग्गलं-फलोंको व और उच्छुखंड-गन्ने-शेरडी के टुकड़ोंको, तथा जिस पदार्थमें भोयणजाए= खानेयोग्य अंश अप्पे सिया-थोडा हो और उज्झणधम्मिएन्डालदेनेयोग्य अंश बहु-बहुत हो ऐसे फल आदि दितियं देनेवालीसे साधु पडियाइक्खेकहे कि तारिसं-इस प्रकारका आहारादि मे-मुझे (लेना) न कप्पइ-नहीं कल्पता है ॥७३।७४॥ टीका-'बहुअट्टियं०' इत्यादि, 'अप्पे सिया' इत्यादि च। वहस्थिकम् बहूनि, अस्थीनि-बीजानि-अस्थि-बीजमिति रायमुकुटः, वैद्यकश्चेति शब्दकल्पद्रुमः; यस्मिन् , यद्वा बहूनि अस्थिकानि ‘अस्थिकं-बीजे मेदोजधातौ चेति राजनिघण्टुः' इति वैद्यकशब्दसिन्धुः; यस्मिंस्तत्, बहुवीजकं-योगरूढमेतत् , सीताफलादिकमित्यर्थः 'बहुअट्टियं' इत्यादि तथा 'अप्पे सिया' इत्यादि । 'अस्थि' शब्दका अर्थ, बीज होता है, रायमुकुट तथा वैद्यकोषोंमें 'अस्थि शब्दका बीज ही अर्थ है, ऐसा 'शब्दकल्पद्रुम' अभिधानमें भी लिखा है । अत एव बदस्थिक शब्दका अर्थ है-बहुत बीजोंवाला । यह शब्द योगरूढ है, अत एव सीताफल अर्थ होता है। निघण्टुमें भी सीताफल (सरीफा)के इतने नाम गिनाये हैं वहुअढियं० त्याह, तथा अप्पे सिया. त्या मस्थि' शहना अर्थ બીજ (ઠળીયે) થાય છે રાયમુકુટ તથા વૈદ્યકામાં અસ્થિ શબ્દને બીજ એ જ અર્થ છે, એમ “શબ્દકલ્પદ્રુમ મા પણ લખ્યું છે એટલે વહથિ. શબ્દને અર્થ થાય છે બહુ બીજે વાળું, એ શબ્દ ગરૂઢ છે, એટલે સીતાફળ અર્થ થાય છે નિઘ ટુમાં પણ સીતાફળનાં આટલાં નામ ગણાવ્યાં છે
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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