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________________ ४३४ श्रीदशवकालिकमरे अथवा य. शिशुः स्तन्यमपिवन्नके समीपे वा तिष्ठेत्तं परित्यज्य दातुं पृथग्भूतायां तस्यां यदि स रुयात् तदापि तया दीयमानमाहारादिकं संयतानामकल्पिक(त)म् , शिश्वाबाहारान्तराय-कर्कशहस्त-भूमि-मञ्चकादिस्पर्शजनितपीड़ा-मांसाशि-मार्जारकुकुरादिजन्तुकृतोपघातादिसम्भवात् , दृश्यते हि कचन निर्जनादौ स्थाने शृगालादयो बालानपहृत्य पलायन्त इति ॥४२॥४३॥ मूलम्-जं भवे भत्तपाणं तु, कप्पाकप्पंमि संकियं । ૧૧ ૧૦ ૧૨ ૯ दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥४४ छाया-यद्भवेद्भक्त-पानन्तु, कल्प्याकल्प्ये शङ्कितम् । ददती प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तदृशम् ॥४४॥ सान्वयार्थः-ज-जो भत्तपाणं तु-अशनादि कप्पाकप्पम्मि-कल्प्य अकल्प्यके विपयमें संकियं शङ्कित-शङ्कास्पद भवे हो तो दितियं देनेवाली से पडियाइक्खे-कहे कि तारिसं इस प्रकारका आहारादि मे मुझे न कप्पइ-नहीं कल्पता है ॥४४॥ या कोई बालक, स्तन-पान न करता हुआ भी गोदमें या समीपमें बैठा हो, उसे छोड़कर स्त्री आहार देनेके लिये जावे और बालक रोने लगे तो भी उसके द्वारा दिया जानेवाला आहार, संयमियोंको ग्राह्य नहीं है, क्योंकि इससे उसके बालकके आहारमें अन्तराय पड़ती है, मातृ-विरहजन्य दुःख होता है, कठोर हाथ, भूमि, खाट आदिके स्पर्शसे पीड़ा होती है और मांसभोजी विलाव कुत्ते आदि जानवरोंके द्वारा उपघात होनेका सम्भव रहता है। कहीं२ (पहाड़ी प्रदेशोंमें) शृगाल (गीदड़), वालकोंको उठा कर ले भागते हैं ऐसा देखा जाता है ॥ ४२ ॥ ४३ ।। ન કરતુ હોય પણ ખેાળામા યા સમીપમાં બેઠું હોય, તેને છોડીને સ્ત્રી આહાર આપવાને માટે જાય અને બાળક જેવા લાગે તે પણ તેણે આપેલ આહાર સયમીઓને માટે ગ્રાહ્ય નથી, કારણ કે તેથી તેના બાળકના આહારમા અતરાય પડે છે, માતૃવિરહજન્ય દુઃખ થાય છે, કઠેર હાથ, ભૂમિ, ખાટલા આદિના સ્પર્શથી પીડા થાય છે અને માસજી બીલાડા કુતરા આદિ જાનવરો દ્વારા ઉપઘાત થવાને પણ સંભવ રહે છે કયાક કયાક (પહાડી પ્રદેશમા) શિયાળ બાળકને Grcी कनय छे, लेवामा मावे छे (४२-४3)
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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