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________________ ४२० श्रीदशवैकालिकसूत्रे ५ मूलम् - पुरेकम्मेण हत्थे, दबीए भायणेण वा । ७ ૧૭ ૯ ૧૧ e दिंतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ||३२|| छाया -- पुरः कर्मणा हस्तेन, दय भाजनेन वा । ददतीं प्रत्याचक्षीत, तादृशं मे न कल्पते ॥ ३२ ॥ पुरः कर्म दोष कहते हैं— सान्वयार्थः - पुरेकम्मेण= साधुके आने के पहले या सामने साधुके लिए सचित्त जलसे किया हुआ हस्तादिधावन पुरःकर्म कहलाता है, उस पुरःकर्मवाले हत्थे = हाथ से दब्बीए= उस प्रकारकी कडछी अथवा चमचासे वा = अथवा भायणे = दूसरे वरतन से (आहारादि) दितियं = देती हुईको पडियाइक्खे = कहे कि तारिस = इस प्रकारका आहार मे=मुझे न कप्पड़ नहीं कल्पता है ||३२|| टीका - पुरः कर्मणा = पुरः = पूर्वम् अग्रतो वा कर्म - क्रिया पुरःकर्म, तेन पुर:कर्मणा, लक्षणया पुरः कर्मयुक्तेनेत्यर्थः, अस्य च हस्तादिभिस्त्रिभिः सम्बन्धः, हस्तेन= करेण, दर्या = खजाकया, भाजनेन=अमत्रेण वा ददतीं प्रत्याचक्षीतेत्यादि पूर्ववत् । नवे गृहस्थानां पचन-पाचनादिक्रियामन्तरेणाऽऽहाराद्यसंभव इति साध्यागमनात्माक पचनादिक्रियाऽवश्यं कर्त्तव्या, तथा सति पुरः कर्मदोपदुपितत्वेन साधू के आने से पहले या सामने की जानेवाली क्रिया को पुरःकर्म कहते हैं। पुरःकर्मयुक्त हाथसे, कुडछी (चमचा) से अथवा वर्तनसे देनेवाली प्रति साधु कहे कि ऐसा आहार मुझे नहीं कल्पता है । 1 प्रश्न- हे गुरुमहाराज ! गृहस्थ जबतक पचन- पाचन आदि क्रिया न करे तब तक आहार वन नहीं सकता है, अत एव मुनिके आगमन के पहले पचन - पाचन आदि क्रिया अवश्य करनी पडती है । ऐसा करने से वह आहार पुरः कर्म से दूषित होगा तो भिक्षु कभी भिक्षा ग्रहण नहीं સાધુ આવતાની પહેલા યા સાધુની સામે કરવામા આવતી ક્રિયાને પુરક કહે છે, પુર ક યુક્ત કડછીથી કે વાસથી દેનારીની પ્રત્યે સાધુ કહે કે એવે આહાર મને કલ્પતે નથી પ્રશ્ન-હે ગુરૂ મહારાજ ! ગૃહસ્થ ત્યાંસુધી પચન-પાચન આદિ ક્રિયા કતૅ નથી, ત્યાસુધી આહાર અની શકતેા નથી, એટલે મુનિના આગમન પહેલાં પચનપાચનાદિ ક્રિયા જરૂર કરવી પડે છે એમ કરવાથી એ આહાર પુરાકથી કૃષિત થાય તેના ભિક્ષુ કદાપિ ભિક્ષા ગ્રહણ કરી શકે નહિ. સાધુની સામે કરવામાં
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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