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________________ १८२ ३४ . ३७ श्रीदशवकालिकसूत्रे वस्तुस्मरणमिति फलितम् , यद्वा आतुरशब्दोऽत्र भावप्रधाननिर्देशस्तथाचाऽऽतुरत्वे स्मरणमिति समासः, रोगाद्यवस्थायां पूर्वाऽनुभूतवस्तुस्मरणमित्यर्थः (३१)। चकार इहापि समुच्चयार्थकः । अत्रासंयमादयो दोपा जायन्ते ॥ ६॥ मूलम्-मूलए सिंगवेरे य, उच्छुखंडे अनिव्वुडे । कंदे मूले य सच्चित्ते, फले बीए य आमए ॥७॥ छायाः-मूलकं शृङ्गवेरं च, इक्षुखण्डमनिवृतम् ।। ___ कन्दो मूलं च सचित्तं, फलं वीजं चामकम् ॥ ७ ॥ सान्वयार्थः-य और (३२) मूलए मूला (३३) सिंगवेरे-अदरख (३४) उच्छुखंडे-गन्ना (सेलडी) अनिव्वुडे-शस्त्रसे अपरिणत (३५) कंदे-कन्द य= और (३६) मूले शिफा (तथा) सचित्ते-सचित्त (३७) फले-फल य और आमए सचित्त (३८) बीए-बीज । भावार्थ-इनके सेवनसे अनन्तकाय आदि वनस्पतिकायकी विराधना होती है ॥ ७॥ ___टीका-मूलकं प्रसिद्धम् (३२), शृङ्गवेरं शृङ्गवढेरं शरीरं यस्य तत् आईकमित्यर्थः (३३), च-तथा इक्षुखण्डम् इक्षुशकलम् , एतत्रयम् अनिवृतं शस्त्रापरिणतम् (३४) कन्दः शूरणादिः (३५), मूलं शिफा (३६), च-पुनः, सचित्तं सजीवम् , स्मरण करना अर्थात् बीमारीमें हाय! हाय! करना ॥६॥ (३२) सचित्त मृलाका सेवन करना । (३३) सचित्त अदरख (आदा) का सेवन करना। (३४) सचित्त इक्षुखण्डका सेवन करना। (३५) सचित्त शरण आदि कन्दोंका सेवन करना। (३६) सचित्त मूलका सेवन करना। निमारीमा 'डाय ! डाय !' ४२वी. (६) (३२) सथित्त भूमार्नु सेवन ४२j (૩૩) સચિત્ત આદુનું સેવન કરવું (૩૪) સચિત શેરડીનાં પતીકાં–કકડાં–નું સેવન કરવું (૩૫) સચિત્ત સૂરણ આદિ કંદોનું સેવન કરવું (૩૬) સચિત્ત મૂળનું સેવન કરવું
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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