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________________ दशवैकालिक सूत्र यह सुनते ही उन्हें यह तथा इसी प्रकार के अन्य अनेक अनर्थ एक ही कार्यमें दीखने लगे और इस संसार के स्वाथों से उन्हें परम वैराग्य हुआ । पूर्व संस्कारों से उसको और भी वेग मिला और उनकी भावना का प्रवाह थोडी ही देर में पलट गया। वहीं से रथ लोटाकर वे अपने घर पर आये और खूब मनन करने के बाद अन्तमें उनने त्यागमार्ग अंगीकार किया। उनकी उत्कट भावना देखकर दूसरे एक हजार साधक भी उनके साथ २ योगमार्ग की प्राराधना के लिये निकल पडे । १० निमित्त से प्रबल वैराग्य के सहचरियों के साथ उनने प्रवज्या उनके बाद राजीमती भी इसी साथ साध्वी हो गईं। सात सौ धारण की। एक समय की बात है कि रैवतक पर्वत पर नेमिनाथ भगवान को वंदना करने के लिये जाते समय मार्ग में खूब ही जलवृष्टि हुई जिससे राजीमती के सत्र वस्त्र भीग गये। वे पास ही की एक एकांत - गुफामें उन वस्त्रों को उतार कर सुखाने लगीं । उस समय उस गुफामें ध्यानस्थ बैठे हुए रथनेमि की दृष्टि उन 'पर पडी । रथनेमि नेमिनाथ के छोटे भाई थे और ये बालवयमें ही योगमार्गमें प्रवृत्त हुए थे । राजीमती के यौवनपूर्ण उस नयनाभिराम सौन्दर्य को देखकर रथनेमिका चित्त डोलायमान होने लगा । फिर वहां संपूर्ण एकांत भी थी इस कारण उनकी दवी हुई कामवासना जागृत होगई । वासना ने उन्हें इतना व्याकुल बना दिया कि उन्हें अपनी साधु अवस्था का भी भान न रहा । अन्तमें उस साध्वी महासतीने रथनेमिको किस प्रकार पुनः संयम मार्गपर स्थित किया उसे जानने के लिये रथनेमि - राजीमती के मनोरंजक संवाद को पढो जो उत्तराध्ययन के २२ वें अध्ययन में दिया गया है । * उत्तराध्ययन सूत्रका हिंदी अनुवाद - पृष्ठ नं. २२ह से देखो ।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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