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________________ श्रामण्य पूर्वक भी पार कर सकोगे। द्वेपको काट डालो और श्रासक्तिको दूरकर दो बस ऐसा करने से ही इस संसार में सुखी हो सकते हो। टिप्पणी-कामसे क्रोध, क्रोधसे संमोह, संमोह से रागद्वेष, और रागद्वेष से दुःख क्रमशः पैदा होते हैं। इस तरह यदि वस्तुतः देखा जाय तो मालूम होगा कि दु:ख का मूल कारण वासना है इसलिये वासना का क्षय करने की क्रियारूपी तपश्चर्या करना यही दुःखनाश का एकतम उपाय है। __ यहां पर रथनेमि तथा राजीमती का दृष्टांत देकर उक्त सत्यको और भी स्पष्ट करते है। रथनेमि राजीमती का दृष्टांत सोरठ देशमें अलकापुरी के समान विशाल द्वारिका नामकी एक नगरी थी। वहां विस्तीर्ण यादवकुल सहित श्रीकृष्ण राज्य करते थे। उनके पिताका नाम वसुदेव था। वसुदेव के बड़े भाई का नाम समुद्रविजय था। उन समुद्रविजय के शिवादेवी नामकी पटरानी से उत्पन्न सुपुत्रका नाम नेमिनाथ था। नेमिनाथ जब युवा हुए तब कृष्ण महाराज की प्रबल इच्छा से उनकी सगाई उग्रसेन (जिनका दूसरा नाम भोजराज किंवा भोगराज भी था) राजा की धारणी नामकी रानी से उत्पन्न राजीमती नामकी परम सुन्दरी कन्या के साथ हुई थी। श्रावण शुक्ला षष्ठी के शुभ मुहूर्त में बडे ठाटवाट के साथ वे कुमार नियत नियमों के अनुसार विवाह करने के लिये श्वसुर गृह की तरफ जा रहे थे। उसी समय मार्ग में पिंजरों में बंद पशुओं की पीडित पुकार उनके कानों में पड़ी। सारथी को पूंछने पर उन्हें . मालूम हुआ कि स्वयं उन्हीं के विवाह के निमित्त से उन पशुओं का वध होने वाला था। * डॉ. हर्मन जैकोबी उसको भोजराज सिद्ध करते हैं। .
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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