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________________ दशवैकालिक सूत्र के कई एक प्रकरण अन्य आगमों में से लिये गये । हैं और वे उद्धृत से स्पष्ट मालूम होते हैं; इसलिये उक्त मत का खंडन करते हुए डॉक्टर वाल्थर शूविंग (Dr. Walther Schubring) लिखते हैं: " This designation seems to mean that these - four works are intended to serye tbe Jaio monks and nuns in the begining (मूल) of their career." . अर्थात्-ये सूत्र जैन साधु तथा साध्वी को साधु जीवन के प्रारंभ में आवश्यक यमनियमादि को आराधना के लिये कहे गये हैं, ... इस लिये इनका नाम. ' मूलसूत्र । पड़ने का अनुमान होता है । ', परन्तु इस मत परमी विद्वानों में ऐक्य नहीं है । जैन शास्त्रों के परम विद्वान् इटालियन प्रोफेसर गेरीनो (Professor Gnerinot) . का यह मत है कि ये ग्रंथ Traites Original * अर्थात् मूल ग्रंथ हैं क्योंकि इन ग्रंथों पर अनेक टीकाएं तथा. नियुक्तियां रची गई हैं। टीका ग्रंथों में, जिस ग्रंय की वह टीका होती है उसे. . सब जगह.. . 'मूल ग्रंथ ' कहा जाता हैऐसी परिपाटी है जो हमें सभी टीका ग्रंथों में दिखाई देती है। जैन धार्मिक ग्रंथों में सबसे अधिक टीकाएं : इन ग्रंथों पर हुई हैं और उन सब टोकाओं में इन्हें प्रचलित पद्धति के अनुसार 'मूल सूत्र' कहा गया है । इसलिये उनका अनुमान है कि टीकाओं की अपेक्षासे जैन आगम में इन सूत्रों को ' मूल सूत्र' कहने की प्रथा पडी होगी। * देखो La Religion Dyaina..P..79 (१८).
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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