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________________ सूत्रो में केवल सारभूत तत्त्वों का वर्णन तथा संयमी जीवन संबंधी यमनियमों का उपदेश विशेष रूप में दिया गया है । छेद सूत्रों में श्रमण- जीवन संबंधी यमनियमों में जो भूल हो जाय उनके प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध होने के उपायों का वर्णन किया गया है । दशवैकालिक में साधु - जीवन के यमनियमों का मुख्यतः वर्णन होने से, ठाणांग सत्र के चोथे ठाणे में वर्णित चार योगों में से चरणानुयोग में इसका समावेश किया जा सकता है । 'मूल' नाम क्यों पड़ा ? अंग, उपांग तथा छेद इन तीन विभागों के नामकरण तो उनके विषय एवं अर्थ से स्पष्ट तथा समझ में आ जाते हैं और उनके वैसे नामकरण के विषय में किसी भी पाश्चात्य अथवा पौर्वात्य विद्वान को लेशमात्र भी मतविरोध नहीं है किन्तु 'मूल सूत्र' के नामकरण में भिन्न २ विद्वानों की भिन्न २ कल्पनायें हैं | :: शार्पेन्टियर नामक एक जर्मन विद्वान 'मूळ सूत्र' नाम पडने का कारण यह बताते हैं कि इस सूत्र में स्वयं भगवान महावीर के ही शब्द "Mahavir's own words " * का संग्रह किया गया है अर्थात् इन सूत्रों का प्रत्येक शब्द स्वयं महावीर के मुख से निकला हुआ है इसलिये इन सूत्रों का नाम 'मूल सूत्र' पड़ा | • • यह कथन शंकास्पद है क्योंकि इस ग्रंथ में केवल भगवान के ही शब्दों का संग्रह है और किसी के शब्दों का नहीं, अथवा इसी शास्त्र में भगवान के उपदेश हैं अन्य ग्रंथों में नहीं - यह नहीं कहा जा सकता See Utt. Su. Introduction P. 79. (१७)
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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