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________________ - दशवकालिक सूत्र उन कठोर वचनोंको भी मोतमार्गका जो शूरवीर तथा जितेन्द्रिय पथिक सहिष्णुताको अपना धर्म मानकर प्रेमपूर्वक सहन कर लेता है वही वस्तुतः पूजनीय है। टिप्पणी-क्षमा वीर पुरुषका भूषण है। जिसमें शक्ति होती है वही सहन कर सकता है। कायर कदाचित् कठोर वचनको कापसे सहन कर लेगा किन्तु उसका मन तो कुदता ही रहेगा। आज भी अपने शिर पर नंगी नलवारका वार सहनेवाले और मैदाने जंगमें बढ़ २ कर हाथ दतानेवाले हजारों लाखों हो शरीर मिल जायगे, उपाय किये बिना हो आपत्तियों को सहजाने वाले साधक भी सैकडों मिल जायगे किन्तु विना कारण कठोर शब्दोंकी वर्षाको तो कोई विरला वीर ही सह सकता है! [] जो साधु किसी भी मनुष्य की पीठ पीछे निंदा नहीं करता. सामने वैर विरोधको बढानेवाली भाषा नहीं वोलता और जो निश्चयात्मक तथा अप्रिय भाषा नहीं बोलता वही वस्तुतः पूजनीय है। टिप्पणी-निंदाके समान एक भी विष नहीं है । जिस मनुष्यकी निंदा 'की जाती है वह कदाचित् दूषित भी हो तो उसके दोषोंको प्रकट करनेसे वे घटने के बदले उल्टे बढ़ते ही जाते है और निंदक स्वयं वैसा ही दुष्ट बनने लगता है इस तरह सुननेवाला, सुनानेवाला और खुद निदित ये तीनों ही विषाक्त वातावरण पैदा करते हैं। इसीलिये इस दुर्गुणको शालोंमें त्याज्य कहा है। [१०] जो साधक अलोलुपी, अकौतुकी (जादूगरी प्रादिसे रहित) मंत्र, जंत्र, इन्द्रजाल आदि नहीं करनेवाला, निष्कपट, निश्छल, दैन्यभावसे रहित, जो स्वयमेव अपनी प्रशंसा नहीं करता और न दूसरोंसे अपनी खुशामदकी इच्छा ही करता है वही वस्तुतः पूज्य है। व] "हे प्रात्मन् ! साधुत्वं एवं असाधुत्वकी सच्ची कसौटी गुण एवं अवगुण हैं (अर्थात् गुणोंसे साधुत्व तथा अवगुणोंसे असाधुत्व
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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