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________________ पिंडेपणा ६३ दाता स्त्री को भिन्नु कहे कि ऐसी भिक्षा मेरे लिये ग्राह्य नहीं है। [६१+६२] अन्न, पानी, खाद्य तथा स्वाद्य इन ४ प्रकार के श्राहारों में से यदि कोई भी श्राहार अनि पर रक्खा हो अथवा श्रनि का स्पर्श कर के दिया जाय तो ऐसा अन्नपान संयमी पुरुषों के लिये प्रकल्प्य है ऐसा जानकर भिन्नु दाता स्त्री को कहे कि ऐसी भिक्षा मेरे लिये ग्राह्य है। [ ६३ + ६४ ] ( दाता यह जानकर कि मुनि को व्होराने में तो देर हो जायगी और इतनी देरमें कहीं आग ठंडी न पड जाय इस उद्देश्य से ) चूला में इंधन को अंदर धकेल कर अथवा बाहर खेंचकर, श्रमि को अधिक प्रज्वलित (प्रदीप्त) करके अथवा ( जल जाने के भय से) अझिको ठंडी करके, पकते हुए न में उफाल श्राया जानकर उसमें से कुछ निकाल कर अथवा उसमें पानी डालकर शांत कर, हिलाकर अथवा चूल्हा पर से नीचे उतार कर श्राहार पान का दान करे तो ऐसा श्राहार पान भी संयमी पुरुषों के लिये कल्प्य नहीं है इस लिये भिन्नु उस दाता बाई से कहे कि ऐसी भिक्षा मेरे लिये ग्राह्य नहीं है। टिप्पणी- अनि सजीव वस्तु होने से उसके जीवोंकी हिंसा न हो इसी उद्देश्यसे सूक्ष्मातिसूक्ष्म हिंसायुक्त भोजन को भी साधु के लिये अग्राह्य बताया है । [ ६+६६ ] भिक्षार्थ गया हुआ साधु वर्षा ऋतुमें कीचडसे बचने के लिये रास्तेमें तख्ता, पत्थर, ईंट अथवा लांघ कर जाने के लिये जो कुछ भी अन्य पदार्थ रक्खा हो, यदि वह स्थिर न हो ( हिलता या डगमगाता हो ) तो पंचेंद्रियों का दमन करने वाला समाधिवंत साधु उस पर होकर गमन न करे क्योंकि उसकी ६
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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