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________________ प्रस्तावना । (५) इस डिरेक्टरीसे केवल परस्परके पत्रव्यवहार संबंधी परिचयका ही सुर्मता नहीं होगा, बरन् प्रत्येक जैनी भाईके हृदयमे जात्यभिमान और स्वजातिप्रेमका उद्भव होगा । इस डिरेक्टरीमे जो ग्राम, तीर्थक्षेत्र विगैरहका वर्णन दिया है उसको पढ़नेसे माछम होगा कि अपने पूर्वज आचार्य आदि कैसे प्रतापी, तेजस्वी, बलवान, दीर्घजीवी और धर्मकार्यरत होगये थे और इस समय भी हमारी संप्रदायमे कैसे २ धनवान्, विद्वान्, परोपकारी और परिश्रमी पुरुष उपस्थित है,तब हृदयमे सहज ही - जात्यभिमानका संचार हो उठेगा । और जब भूतपूर्व उन्नत अवस्थासे आजकलकी अवस्थाका मिलान करके वर्तमान समयके दीनहीन भाइयोंकी दशापर ध्यान दिया जायगा तब उनसे सहानुभूति होगी और उनकी सहायता करनेके लिये भी आप ही उद्यत होंगे। अथवा अपनी समाजकी पूर्णरूपसे पूर्वापर अवस्थाका ज्ञान होनेपर सब भाइयोंके दिलमें यह बात आप ही खटकेगी कि इस समय भपनी समाजको उन्नत अवस्थापर पहुँचानेके लिये क्या २ उपाय करना उचित है। इस डिरेक्टरीसे यह और भी फायदा है कि हमारे आर्थिक :दशामे कुछ सुधारा होजायगा, हमारा प्रायः सर्व समाज व्यवसायी है और इस समय हमारे व्यापारकी भी बड़ी शोचनीय दशा है । लोग घरका घरमे व्यापार करके एकके बजाय आधीपर संतोप करके रह जाते हैं, परदेशके व्यापारियों से संवध करके व्यापारको बढ़ाना अथवा अन्य तरहसे व्यापारको उन्नत करना तो मानों पढ़ा ही नहीं-इस डिरेक्टरीद्वारा समाजका यह दोष भी सहज हीमें दूर होना संभव है । एक प्रांतके निवासी दूसरे प्रांतोंके लोगोंका परिचय पाकर अपने प्रान्तके और उस प्रांतके वीचमें परस्परका अच्छा व्यापार चला सकते हैं। अथवा प्रान्त प्रांत के जैनी भाई अपनी २ कंपनी खोलकर या और दूसरी तरकीबोंसे अच्छे फायदे उठा सकते है। __ इसके प्रथम भागमे संयुक्तप्रदेशके दि. जैनी भाइयोंके बस्तीवाले सब गांव, जिले और प्रत्येक गांवके मुखियोंके नाम, उनका व्यापार और जात बताई गई हैं और दूसरे प्रकरणमे इसी प्रांत के मुख्य २ गांव, क्षेत्र तथा प्रसिद्ध २ स्थलोंका वर्णन क्रमवार दिया है, जिससे जात्रियोंकी जात्रा सफलतासे हो सकती है । इसके अनुसार क्रमशः मध्य प्रदेश, राजपुताना, पंजाब, बंगाल, बंबई प्रान्त (गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर कानड़ा ). मद्रासप्रान्त और मैसूर प्रांतकी हालत दी गई है। फिर अकारादि क्रमसे हिन्दुस्थानके सर्व ग्राम, ( जहां दिगम्बर जैनियोंकी आवादी है ) प्रत्येक ग्रामके मंदिर, जातियां, मनुष्यसंख्या और पोस्टआफीसकी फेहरिस्त दीगई है । और आखिरी भागमे प्रात २ की जातियां और प्रत्येक जातिकी मनुष्य संख्या क्रमवार दी गई है और भारत वर्षीय दिगम्बर जैनियोकी मर्दुम सुमारीका नकशा दियागया है। जिससे पाठकोंको सहज ही अपनी सामाजिक अवस्थाका ज्ञान प्राप्त करके परस्परकी जान पहिचान और अपने समाजकी आर्थिक और पारमार्थिक साधनोंका ज्ञान करानेको यह ग्रन्थ एक अजब चीजसी मालूम होगी । अस्तु, इस डिरेक्टरीके साथ जो नकशा दिया है उससे मै आशा करता हूँ कि, हमारे भाइयोंको तीर्थयात्रा तथा
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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