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________________ (४) प्रस्तावना । उनका निवासस्थान कहां है. यह भी नहीं मालूम तो फिर ऐक्यता कैसे कर सकते है ? यद्यपि यह कार्य जातीय समाचारपत्रोंद्वारा किया जा सकता है; परन्तु किंचित् मात्र--सर्वथा नहीं । और समाचारपत्रोंको इने गिने दश पांच व्यक्ति ही पढ़तेहै, फिर भी समाचारपत्रोंमें ऐसे विषय समाचारोंकी तरह प्रकाशित कर सकते है नकि समाचारपत्रोंद्वारा किसी व्यक्ति विशेषसे अपनी हार्दिक व्यथा सुनाई जासकती । इसी आशयको लेकर हमने मिन्न २ प्रांतोकी समाजकी स्थितिका भलीभांति परिचय दिलाने के लिये यह "दिगम्बर जैन डिरेक्टरी। बड़े परिश्रमसे तयार कराई है। वर्तमान समय धार्मिक और सांसारिक उन्नतिका है। इस समय जब कि इस महान् भारतपर दयालु और न्याय नीतिपुण सम्राट पंचम जॉर्जके राजधुरीणत्वमें चारों ओर शान्तता छा रही है, जब कि भारतकी सर्व जातियां और सर्व सम्प्रदायें समयानुसार अपनी२उन्नति करनेके लिये दत्तचित हो रही है तो क्या हमारी जैन जाति ऐसे सुअवसरपर चुप रहेगी ? नहीं नहीं, हमारे जातिके मुखियोंका भी चित्त इसकी ओर आकर्षित हुवा है जिसका फल भा० दि० जैन महासभा, और प्रान्तिक सभाएँ हैं, परन्तु इस बड़े देशके अन्दर अपने धर्मबंधुओंका स्थान ठिकाना, क्षेत्र, पाठशाला वगैरहका पता नहीं लगनेसे हमारे भोले अनभिज्ञ भाइयोंको वड़ी २ कठिनाइयोका मुकावला सहना पड़ता है। इसको देख महासभाके परोपकारी नेताओंने अपने कलकत्तेके ग्यारहवें अधिवेशनमें प्रस्ताव नं१ स्वीकृत किया था परन्तु उसके अनुसार यह महत्त्वपूर्ण और वडामारी खर्चेका बोझा किसी भाईने अपने शिरपर नहीं लिया, वरन् परोपकारी समाजसेवी श्रीमान् दानवीर जैन कुलभूषण शेठ माणिकचंद हीराचंद जवेरी जे. पी. बम्बई तथा शेठ नवलचंद हीराचंद जवेरी इन दोनों बंधुओंके आश्नयसे संवत् १९६४ ता० १५ नवंबर सन् १९०७ से बड़े उत्साहपूर्वक समाजका कार्य समझकर यह डिरेक्टरीका कार्य प्रारंभ किया । इसके तयार करानेको बड़ा भारी परिश्रम करने लगे और करीव १० या १२ कर्मचारीगणोंद्वारा सतत परिश्रम कियाहै आखीर इससाल ( १९१४) मारच यह काम पूरे तौरपर तय्यार कराकर अपने धर्म बंधुओंके हाथमें देनेका मुझे अवसर प्राप्त हुआ है । यह बड़ा ग्रंथ प्रत्येक कुटुंबियोंको संग्रह करनेके लायक है । कारण इसमे यावत् दिगम्बरजैन भाइयोंके वस्तीवाले ग्रामके नाम, मनुष्यसंख्या और उनकी दशाका संक्षेप उल्लेख किया गया है । इस डिरेक्टरीको बनानेके लिये करीब १५०००) रुपये खर्च हो चुके हैं । जिसके पास यह डिरेक्टरी होगी, उससे पहले तो भिन्न •२ जैन जातिके लोगोको वास्तविक अवस्थाका ज्ञान सहज ही मालूम हो सकता है। दूसरे परस्पर पत्रव्यवहार करनेमें भी उसे बड़ी सहायता हो सकती है । कारण उसमे जिसके साथ पत्रव्यवहार करने हो उसका पूरा २ ठिकाना मिलता है और इस ही तरहसे इस डिरेक्टरीके द्वारा हमारे समस्त दिगम्बर जैन भाई समयपर एक दूसरेको तन मन धनसे सहायता दे सकेंगे अथवा अपने मनकी व्यथा एक दूसरेपर सहज ही प्रगट कर सकेंगे।
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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