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________________ ४८५ राजपूताना-मालवा। यहांपर सोने चांदा और जड़ाऊ हर किस्मका माल अच्छा बनता है। तांबे पीतल कांसे आदिके वर्तन बहुत नामी और प्रशंसनीय बनते हैं । संगमरमर संगभूसाकी मूर्तियां और खलवटे खिलौने और लकड़ीका सामान आदि, प्रतिमाएँ भी अच्छा बनती हैं । और व्यापार विशेषकर इन ही चीजोंका होता है । जवाहिरातका भी व्यापार होता है। जैसलमेर। राजपूतानेके पश्चिमी भागमें जोधपुरसे १४० मीलसे अधिक दूरीपर जैसलमेर कस्वा है, शहरकी मनुष्य संख्या १०५०९ है, इनमें जैन ४५० हैं । जैसलमेरका राजकुल 'यदुवंशी' राजपूत है, इसके नियत करने वाले 'देवराजका' जन्म सन् ८३६ ई० हुआ था, देवराजके पीछे छठवें राजा रावल 'जैसलने' सन्११५६ ई० में जैसलमेर बसाया और 'किला' बनवाया था। देखने योग्य स्थान ये है (१) कस्बेके धनिकांके पीले पत्थरके बने हुये सुन्दर मकान' (२ ) शहरसे थोड़ी दूरीपर २५० फुट ऊंची पहाड़ीपर 'किला' है इसकी दृढ़ दीवार २५ फुट उंची है । (३) महारावलका 'महल' किलेके प्रधान दर्वाजेपर पीले पत्थरका बना है। (४) किलेके कई सुन्दर 'जैनमन्दिर' सबसे पुराना जैनमन्दिर सन् १३७१ ई० में बना था। (५) एक 'प्राचीनपुस्तकालय' (६) शहरसे उत्तरकी ओर 'कानोद' में नमक वनता है। यहांपर वर्षा बहुत कम होती है, धरती वालदार उजाड़ है, लोग वर्षातके रक्खे हुये पानीसे गुजारा (निर्वाह) करते हैं । जैसलमेर की आवहवा सूखी है, वातीफसल धार बाजरा तिली पैदा होती है । गेहूं जब आदि बहुत कम पैदा होते हैं । वर्षातके आरंभमें बालू (रेत ) की पहाड़ियां ऊंटोसे जोती जाती है । वीज बहुत नीचे डालते हैं। महारावलकी सेनामें इंटके सवारही अधिक है । स्थानान्तर गमनकी प्रधान सवारी ऊंट है । गोल छप्परदार मकान अधिक हैं ऊन, घी, उंट, मवेसी. भेड़, आदिका यहां व्यापार अधिक होता है। जोधपुर (मारवाड़) 'भारोड जंकशनसे ६३ मील जोधपुग्महलका स्टेशन और ६४ मील जोधपुरका स्टेशन है, स्टेशनसे सवारी हर तरहकी मिलती है। बालदार पत्थरकी पहाड़ियोंका
SR No.010495
Book TitleBharatvarshiya Jain Digambar Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakurdas Bhagavandas Johari
PublisherThakurdas Bhagavandas Johari
Publication Year1914
Total Pages446
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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