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________________ प्रथम सक्दि : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व/ गुरु पराजित हुआ, ज्ञान के क्षेत्र में और वह भी अपने ही शिष्य से कितनी विचित्र स्थिति है, कितना विचित्र भाव है, प्रश्न उभरता है आखिर क्यों? तो इसका सटीक उत्तर है- 'गुरु द्वारा काव्य महत्त्व की अस्वीकृति'। महाकवि 'शेली' ने अपने काव्य विषय प्रबन्ध में काव्य महत्त्व को स्वीकार करते हुए अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है 'कविता सब वस्तुओं को सौन्दर्य से मण्डित बना देती है। जो स्वयं सुन्दर होता है, उसके सौन्दर्य को बढ़ा देती है और जो वस्तु कुत्सित होती है, उसके साथ सौन्दर्य का योग करती है।'४८ टी०एस० ईलियट ने पहले काव्य महत्त्व पर विचार नहीं किया था, परन्तु बाद में उन्होंने इसे स्वीकार करते हुए अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है "कोई भी कवि चाहे अपने पाठक या स्रोता को प्रभावित न करना चाहे, परन्तु उसकी कृति पाठकों पर प्रभाव डाले बिना नहीं रहती।" इस प्रकार पाश्चात्य साहित्यकारों ने काव्य वैशिष्टय को स्वीकार कर उसकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। वस्तु का महत्त्व उसके अन्तर्भाव में निहित होता है। उन भावों के प्रकाशन द्वारा उसके वैशिष्ट्य को उद्घाटित किया जा सकता है। भारतीय काव्य-साहित्य की भावना विश्वव्यापी और सकलजन शुभेच्छु है, परोपकारी है "अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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