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________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि 1 कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन पुलोमपुत्रीदयितोऽन्धकारिं पत्रीव तृष्षातुरितः पयोदम्।। ३. स्वगता शासनं पशुपतेः स कुमार स्वीचकार शिरसावतेन। सर्वथैष पितृभक्तिरतनामेष एव परम खलु धर्मः॥९ ४. द्रुतविलम्वित असुरयुद्धविधो विवुधेश्वरे पशुपतौ वदतीति तमात्मजम्। गिरिजया मुमुदे सुत विक्रमे सति न नन्दति काखलुबीरसू।। ५. हरिणी सुरपरिवृढः प्रौढं वीर कुमारभुपापतेबलवदममारा तिस्रत्रीणां दृगज्जनभज्जनम्। जगदभयदं सद्यः प्राप्यः प्रमोदपरोऽभवद् ध्रुवमभिमते पूर्णे कोवामुदा न हि माद्यति। अनुष्टुप-कालिदास का प्रिय छन्द है और कवि ने इसका विधान इस प्रकार किया है तस्मिन्विप्रकृताः काले तारकेण दिवौकसः। तुरासाहं पुरोधाय धाम स्वायंभुवं ययुः।।२ रति विलाप के प्रसंग में- वियोगिनी-वृत्त का उदाहरण द्रष्टव्य है अथमोह परायणा सती विवशा कामवधूर्विवोधिता। २५३
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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