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________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि अध्याय कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन, "नारीणां नयनेषु चापलपरीवादं विनिघ्नन् वपुः" इत्यादि । महाकवि कालिदास का उपजाति प्रिय छन्द है उन्होंने कुमारसम्भव में इसका अत्यधिक प्रयोग किया है। एक उदाहरण हिमालय द्वारा पार्वती विवाह संस्कार के वर्णन प्रसंग में द्रष्टव्य है "" 'अधोषधीनामाधपस्य वृद्धौ तिथौ च जामिलगुणान्वितायाम् । समेत बन्धुर्हिमवान्सुताया विवाहदीक्षाविधिमन्वतिष्ठम्।। ८६ जैनकुमारसम्भव के द्वितीय सर्ग में वसन्ततिलका और सर्गान्त में मन्दाक्रान्ता छन्दों की योजना हुई है- छठे सर्ग में मालिनी और अन्तिम सर्ग में उपेन्द्रवजा, इन्द्रवज्रा तथा शिखरिणी छन्द की योजना है। कुल मिलाकर जयशेखर सूरि ने इस महाकाव्य में १७ छन्द प्रयुक्त किये है। उन्होंने अनुष्टुप, वियोगिनी, पुष्पिताग्रा छन्द का प्रयोग नहीं किया है। महाकवि कालिदास छन्दों के प्रयोग में जयशेखर सूरि से अधिक प्रौढ़ थे। उन्होंने एक ही सर्ग (बारहवें ) में पाँच छन्दों की योजना करके छन्दशास्त्र की अपनी परिपक्वता को प्रकट कर दिया है। वे छन्द निम्न है १. रथोद्धता इत्युदीयं भगवांस्तमात्मजं घोरसमहोत्सवोत्सुकम् । नन्दनं हि जहि देवविद्विषं संयतीति निजगाद शंकरः । 1 २. उपजाति अथ प्रपेदे त्रिदशेरशेषे क्रूरासुरोपल्लवदुः जितात्मा । २५२
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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