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________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि ' कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन कोई स्त्री नव विवाहित ऋषभदेव को देखने के लिए शीघ्रता में अपने रोते हुए शिशु को छोड़कर गोद में बिल्ली का बच्चा उठाकर दौड़ पड़ी। उसे देखकर सारी बारात हँसने लगी किन्तु उसे इसका भान तक नहीं हुआ "तूर्णिमृढा ................... जन्यर्जनः स्वयम्" ।।७३ शान्त रस की अभिव्यक्ति में स्वामी ऋषभदेव को गार्हस्थ्य जीवन में प्रवृत्त करने के लिए इन्द्र की उक्तियाँ द्रष्टव्य है "बयस्थनंगस्य .......... विमनास्त्वदन्यः" ।।४ क्रुद्ध भैंसे के चित्रण में भयानक रस की अभिव्यञ्जना हुई है महातनुः .......... प्राजनाविश्रम क्षणम्।। महाकवि कालिदास का हास्य रस सभ्य और ऊँचे दर्जे का जिसे पढ़कर पाठक केवल मुस्कुराता है इनकी कविता ठहाके के साथ हँसी नहीं करती। कुमारसम्भव के पंचम सर्ग में पार्वती के आश्रम में आये हुए ब्रह्मचारी द्वारा शंकर जी की निन्दा के पद्य इसके उदाहरण है "इयञ्च तेऽन्या पुरतो विडम्वना यढूढया वारणराजहार्यया। विलोक्यवृद्धोक्षमधिष्ठितं त्वया महाजनः स्मैरमुखोभविष्यति।।"७६ "द्वयं गतं सम्प्रति शोचनीयतां समागमप्रार्थनया पिनाकिनः। कला च सा कान्तिमती कलावतस्त्वमस्यलोकस्य च नेत्र कौमुदी।। हास्य रस के उदाहरण के रूप में कुमारसम्भव में पार्वती की एक २४८
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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