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________________ सप्तम् परिस्ट : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि 24 भरणाम कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन उत्कीर्णवामीकरपंकजानां दिग्दन्तिदानद्रवदूषितानाम्। हिरण्यहंसव्रजवर्जितानां विदीर्णवैदूर्यमहाशिलानाम्।। आविर्भवद्वालतृणात्रियतानां तदीयलीला गृह दीर्घिकाणाम्। स दुर्दशां वीक्ष्य विरोधि जातां विषादवैलक्ष्य भरं वभार।।८ पादौ महर्षेः किल कश्यपस्य कुलादि वृद्धस्य सुरासुराणाम्। प्रदक्षिणी कृत्य कृतांजलिः सन्धभिः शिरोभिः स नतैर्ववन्दे।।३९ कुमार कार्तिकेय महायोद्धा, आत्मश्लाघा से विरत है न जामदग्न्यः क्षमकालरात्रिकृत्य क्षत्रियाणां समराम वल्गति। येन त्रिलोकी सुभटेन तेन कुतोऽवकाशः सह विग्रहग्रहे।। शत्रु की प्रशंसा करने वाले है दैत्याधिराज भवता यदवादि गर्वाततत्सर्वमप्युचितमेव तवैव किन्तु। द्रष्टास्मि ते प्रवर बाहुबलं वरिष्ठं शस्त्रं गृहाण कुरु कार्मुकमाततज्यम्।।" कुमार कार्तिकेय ने अपनी प्रतिज्ञा 'तारकासुरवध' का पूर्ण निर्वाह किया है। अतः वह दृढ़ निश्चयी भी है शक्तया हृतासुम सुरेश्वरमापतन्तं कल्पान्तवातहसभिन्नभिवाद्रिबॅगम्। २३५
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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