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________________ प्रथम समिद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व ३. शेक्सपीयर के अनुसार शेक्सपीयर ने कल्पनातत्व को प्रधानता प्रदान करते हुए कहा है कि कवि इसी के द्वारा लौकिक और पारलौकिक सभी दृष्यों को अपनी लेखनी द्वारा मधुर झंकार प्रदान करती है।१३ इसके विपरीत प्रकृति के कवि वर्ड्सवर्थ ने काव्य में कल्पना के स्थान पर भाव को महत्त्व देते हुए काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी है। “कविता प्रबल भावों का सहज उच्छलन है, जिसका स्रोत शान्ति के समय में स्मृत मनोवेगों से फूटता है।" महाकवि मिल्टन ने काव्य के सम्बन्ध में अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है “कविता सरल, प्रत्यक्षमूलक तथा रागात्मक होती है"।१५ प्रसिद्ध कवि कालरिज के अनुसार "कविता सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम क्रम है।६ मैथ्यू अनाल्ड के अनुसार Poetry at bottom is criticism of life po "कविता जीवन की आलोचना है"। उपर्युक्त पाश्चात्य साहित्य शास्त्रियों द्वारा काव्य विषयक मतों के अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि उन्होंने कल्पना को काव्य का प्रमुख तत्व स्वीकार
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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