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________________ प्रथम प्राविद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व/ १. अरस्तु के अनुसार 'चित्रकार अथवा अन्य कलाकार की तरह कवि अनुकर्ता है। २. आचार्य होरेस के अनुसार कवि कहलाने का अधिकारी वही व्यक्ति हो सकता है जो दिव्य प्रतिभा तथा अन्तदृष्टि से सम्पन्न हो और विदग्ध वाणी के प्रयोग में कुशल हो। पाश्चात्य काव्यशास्त्रियों की दृष्टि में काव्य जैसाकि पूर्वोक्त उल्लिखित है कि पाश्चात्य काव्यशास्त्रियों ने 'काव्य' का विस्तृत विवेचन किया है तथापि यहाँ कुछ प्रमुख काव्यशास्त्रियों के मतों का उल्लेख करना अभीष्ट है। १. अरस्तु के अनुसार काव्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है। इस प्रकार अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के मत “काव्य अनुकरण का भी अनुकरण है अतः त्याज्य है" का खण्डन करते हुए उसे 'आदर्श जीवन का चित्रण' मानकर अपना मत व्यक्त किया है। २. होरेस के अनुसार अर्थात् होरेस ने कवि और चित्रकार को समान रूप में स्वीकार किया
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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