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________________ भां सुरतमां करीने त्यांथी विहार करी संवत १७४३ मां डभोई गाममां पधार्या, अने डभोई माममा ज तेओश्रीए आ अस्थिर देहनी समाधिपूर्वक त्याग कय?. . पू. श्री उपाध्यायजीनुं आयुं जीवनचरित्र तो लभ्य नथी, परंतु तमना समकालीन मुनिश्री कांतिविजयजीरचित 'सुजसवेली' माथी उपलब्ध थाय छे, ते पदल पू. श्री कांतिविजयजीनो आपणे उपकार मानीए. . पू. उपाध्यायजी रचित साहित्य पू. गुरुदेव न्यायवाचस्पति, शास्त्रविशारद आचार्यदेव श्रीमद् विजयदर्शनसूरीश्वरजी महाराज साहेबने अत्यंत आकर्षे छे, एमनुं जे महादुर्गम साहित्य आजे मळे छे तेनो तेओश्रीए रसपूर्वक खूब परिश्रमथी अंडो अभ्यास कर्यो छ, ए अभ्यासमा एमणे जोयुं के स्वरचित ग्रन्थोनी साक्षी एमना अन्य ग्रन्थोमां केटलीक बार आवे छे. "तत्वमनत्यं मत्कृतमंगलवादादवसे यम् । " "अधिक प्रमारहस्य" "अधिकं मत्कृतन्यायालोकस्याद्वादरहस्ययोरबसेयम्" इत्यादि शास्त्रवार्तासमुच्चयनी पंक्तिओ दर्शावे छे के उपाध्यायजी भगवते मंलपगाद, प्रमारहस्य, तथा स्याद्वादरहस्य नामना ग्रन्यो बनावेला छे. कमनसीबे हाल ते मळतां नथी, एने माटे शोध करत्री आवश्यक छ, अनेकांतव्यवस्था ग्रंथ हमणां ज मळी आव्यो छे. निशाभ, कूपटांत, ज्ञानार्णव तथा तत्त्वविवरण, तिङन्ययोति अधूरां मळी आव्या छ. सिद्धांतमंजरीटीका, विषमता, वाद, आर्षभीय चरित्र, विचारविन्दुबो तथा मुसूति" उपलव्ध पार्नु . सांभळ्यु छे. . तत्यार्थविवरणग्रन्थनी साक्षी अन्य ग्रन्थोमां न जणापाथी पू. श्री उपाध्यायजाए तत्वार्थ- .. भूत्र उपर टीका रची नहि होय एम मानवामां आवतुं हतुं; परंतु राजनगर डेलाना उपाश्रयमांना ज्ञानभंडारना पुरतकोतुं पत्रक बनावतां तत्वार्थवत्राना प्रथम अध्यायनी "तत्त्वार्थविवरण" नामनी टीका प्राप्त थई. ते टीका शासनसम्राट, शासनप्रभावक पृथ्वीमंडळमुकुटायमान पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय श्रीमद् गुरुभगतना उपदेशथी शुद्ध करीन मुद्रित करवामां आवी. एनो अभ्यास खूप खंतपूर्वक पू. गुरुदेवे कों, अने एमने लान्यु के ए ग्रन्थमा पीरसेली अनेरी वानगी सरळ भापामां विस्तारीने सौ विद्यापिपासुओने परिसवामां आवे ए अत्यंत इच्छनीय छ. ए कार्य हाथ पर लेवानी तेओश्रीने लगनी जागी. तेमनी लगनीने शासनसम्राट् पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजश्रीजीना आशीर्वाद सांपडया. दश दश वना लांबा गाना सुधी सतत परिश्रम लईने पू. गुरुदेव १७००० श्लोकप्रमाण "तत्वार्थविवरणपूढार्थदीपिका " नी रचना करी, संवत २००१ मां मृगशिर शुद. एकादशीना सर्वोत्कृष्ट कल्याणक दिवसे ए अन्य पूर्ण थयो, तेओश्री कृतकृत्य न्या. अंधारामा रहेल ग्रन्याने प्रकाशमां आणवानुं काम तो घणाए संशोधकोना हाथे तुं हो, परंतु महापुरुषे रचेल अन्य उपर सतत चिंतन अने परिशीलन करीने तेनी विद्वत्ताभरी विरत टीका रचना, कार्य तो
SR No.010492
Book TitleTattvarthadhigama Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorVijaydarshansuri, Yashovijay
PublisherMotiji Kapurchand Tarachand
Publication Year1955
Total Pages472
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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