SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अने अजोड वक्तृत्वकळा आले पण जैन हैयाने नवावी रह्या छे. (मना नाम मात्रथी जैन हैर्यु ढकी पडे छे, ए तत्वज्ञानी महापुरुषनी अजब कलमयी लखायेल अनेक न्यायग्रन्थना अबलो. कनथी जेनेत प्राज्ञशिरोमणि विद्वानो पण अति चकित थई शिर झुकावे छे. पाटणनी नजीक कनोड गामे पिता 'नारायण' अने माता 'सोभागदेना आंगणे तेओ अवतर्या. स्वाति नक्षत्रमा मेषवृष्टि द्वारा छीपमाथी मोती प्रगटे तेम मातानी कूक्षिथी एका मोती प्रगटयुं. वाल्यवयथी ज एमनी अद्भुत स्मरणशक्तिनो सौने परिचय थयो. एकाद । पार सांभळेल के वांचेल सूत्रो एमने कंठाग्र थई जतां. अतिबाल्यवयमा ज पू. श्री नविजयजीनी साथे समागम थयो, अने संवत १६८८ मां बुद्धिमा अग्रशिरोमणि अनुपम वैरायमूर्ति तेओश्री अति लघु सुकोमल वये कठोर संयमना मार्गे संचर्या अने जिनेश्वरदेवना चरणमां एमर्नु सर्वस्व सौंपी दीधुं. संथमनी साधनामां अने विद्यानी आराधनामां, वीतरागनी भक्तिमां अने शासननी सेवामा एमणे न जोयो दिवस के न जोई रात. अजोड उत्साह अने तीव्र खतथी त्यागना विकट पण सुखद मा जीवनभर प्रयाण जारी राख्यु, परिपही अने उपसर्गाने सहन कर्या, विरोधीओ सामे अणनम झझूमीने एमने हंफाया. एक वीतराग देवनो आश्रय स्वीकारीने अनेक असत्य मतोने एमणे मूळथी उखेडी नांख्या. एमनी अजय तार्किक शतिथी वादीओ अभया. एमना बहुश्रुतपणामां सौ अंजाई गया. .:. उपाध्याय जीने महत्ता खूब परी, पण अभिमान तो लेश नहि. प्रभुनी आगळ पालकनी जेम लाड करवा मंडी जाय अने प्रभुप्रेममां जातने पण भूली जाय. वीतराग प्रभुधर्ममां अस्थिमज्जा प्रेमानुरागी ए महापुरुपनी अनुपम देवभक्ति लोहचुंबक शक्ति-लोहाकर्षकनी जेम मुक्ति आकर्षक हती. राजनगरमा संवत १६९९ ना चातुर्मासमां तेओश्रीए अष्टावधान कर्या अने श्रेष्ठी धनजी सुरानी विज्ञप्तिथी न्यायाभ्यास माटे काशी जवानुं नकी थयुं, न्यायाचार्य श्री भट्टाचार्य पासे अभ्यास शरू को. तार्किक कुलमां सूर्य समान, पड्दर्शनना अखंड रहस्यने जाणनार श्री भट्टाचार्यना सातसो शिष्योना तारागणमां चंद्रनी जेम तेओ दीपता. अल्प समयमा तेमणे अनेक शास्त्रोनुं अवगाहन करी लीधुं. न्यायशास्त्रनो तो कोई ग्रन्थ एवो नहि होय के जे एमना हाथ नीचे पसार न थयो होय. पड्दर्शननो पण सुंदर अभ्यास कर्यो, खूब ज कठिन गणातो गंगेश उपाध्यायकृत " तत्वचिंतामणी" ग्रंथ कंठान करी लीधो. पा, श्री यशोविजयजीनीअद्वितीय विद्वत्ता " अजेयवादी" तरीके ओळखाता दिग्गजपंडित साथे ज्यारे काशीनों कोई पंडित चर्चा करवा तैयार नहोतो त्यारे पू. श्री उपाध्याय जी एनी सांमे बुद्धिना रणांगणे चढया. दिग्गजने घडीमां परास्त कर्यो. एमना ए विजयने परिणामे काशीना सर्व विद्ववाए "न्यायविशारद"नुं महामोल लेखातुं विरुद तेमने अप्यु. ए वातनुं " पूर्व न्यायविशा
SR No.010492
Book TitleTattvarthadhigama Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorVijaydarshansuri, Yashovijay
PublisherMotiji Kapurchand Tarachand
Publication Year1955
Total Pages472
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy