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________________ 'द्वारा पू. भाष्यकार श्री घोषसन्दि क्षमाश्रमणने अगियारः अंगना ज्ञाता तरीके ओळखावे छे. तेओश्री जो पाचक होत तो तेमना विधागुरुनी जेम तेमनी पण पाचक तरीके ओळखाण आपत, आथी तेओ वाचक न हता तेम मानj ०याजवी जणाय छे. - तत्वार्थ विवरणनो संक्षिप्त विषय ' तत्त्वार्थाधिगम सूत्र अने भाष्य उपर, उपर जणाव्यु तम, पू. उपाध्यायजी श्रीयशोविजयजीए " तस्वार्थविवरण" नामनी टीका लखी छे, तेमां शब्दशः भाष्यने अनुसरनि विवरण करवामां आव्यु छे. सूत्रनी मात्र एक अध्याय पूरती टीका आजे उपलब्ध छे. एमां तत्वनी अनेक हकीकतो पूज्यश्री उपाध्यायजीए दर्शावी छे. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्पचारित्रनुं अव्याप्त्यादिदोपरहित अनुगत लक्षण, तेनुं प्रतिपद विवेचन, अने सम्यग्दर्शन, सम्य ज्ञान, ते बन्नेना भेदोना अनुगत लक्षणो तथा तेनु विवेचन, जीव, अजीवादि सात तत्वतुं सयुक्तिक विवरण, निक्षेप, निक्षेपर्नु अनुगत लक्षण, प्रत्येक निक्षेपमा क्यो नय केटला निक्षेपभेद स्वीकारे छे, निक्षेप मानवानुं प्रयोजन, प्रतिनिक्षेपर्नु अनुगंत लक्षण, नयनु विवेचन, प्रमाण साथेनो नयनो भेद, नय सामान्यनुं अनुगत लक्षण, तथा तेनुं स्पष्टीकरण, नयना भेद-प्रभेदो, प्रत्येक भेद-प्रभेदतुं विवेचन सह अनुगत लक्षण, नयनी व्यवहारिक प्रमाणभूतता, तथा नैश्चपिक अप्रमाणभूतता, ज्ञानात्मकनय विपेनी मान्यता, निर्देश आदि छ व्याख्याद्वार तथा सत् संख्या आदि आठ व्याख्याद्वार, गति आदि तेर द्वार पांच ज्ञान तथा तेना प्रतिभेदो विगेरे अनेक बाबतो उपर पू. श्री उपाध्यायजीए झळहळतो प्रकाश पायर्यो छे. ' सत्तरमी सदीना महान् ज्योतिर्धर उपा. श्री यशोविजयजी तत्त्वार्थवियर गर्नु प्रत्येक वाक्य सयुक्तिक छे. तेमांनी चर्चा तर्कानुगामी छे. सूत्रमा रहेलं भावनो तेमां सुंदर स्फोट थयो छे. न्यायविशारदता अने बहुश्रुतता एमां पाने पाने तरवरे छे. ते कृति जो पूर्ण मळती होत तो सत्तरमा अने अढारमा सैकामां थयेल भारतीय दर्शनशास्त्रनो नमूनो पूरो पाडत, एम अत्यारे उपलब्ध एक नाना खंड उपरथी कहेवानुं मन थई जाय छे. मात्र एक अध्याय पूरती टीका पण पू. उपाध्यायजीनी अगाध विद्वत्ता अने न्यायविशारदतानो परिचय आपी जाय छे. एमनी 'ए विद्वत्ताने लईने घणसो वर्ष बाद आजे पण तेओश्री अनेक जैन हैयामां जीवंत छ. . . . श्री जिनेश्वर देव उपरनी पू. उपाध्यायजीनी अविहड भक्ति, श्री जिनाज्ञानुं एमर्नु अनुपम पालन, श्री जिनवाणीनु एमनु' पारगामीपणुं, एमनी न्यायविशारदता, एमनी तर्कानुगामी बुद्धि, तत्वज्ञान- एभर्नु ऊडाण, विरुद्ध जणाता भावोनो समन्वय करवानी एमनी प्रखर शक्ति, भिन्न भिन्न मिथ्या नयोने लडावीने पाछा सम्यक्रूपे शांत करवानी एमनी कुशळता, एमनी अजब स्मरणशक्ति, नास्तिकवाद ना कुरुक्षेत्रमा एमनी अजेयता, एमनी शेरडीना रस करतां पण अधिक मिष्ट भाषा अने मधुर काव्यशक्ति, तथा एमनी सुंदर लेखनशक्ति
SR No.010492
Book TitleTattvarthadhigama Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorVijaydarshansuri, Yashovijay
PublisherMotiji Kapurchand Tarachand
Publication Year1955
Total Pages472
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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