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________________ श्रवणवेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैनतीर्थ की जैनधर्मावलम्बिनी भार्या आचियक्क ने निर्माण कराई थी। 'अक्कन' आचियक्कन का ही सक्षिप्त रूप है इसीसे इसे 'अक्कन बस्ति' कहते है । ३ सिद्धान्त बस्ति यह बस्ति अक्कन वस्ति के पश्चिम की ओर है। किसी समय जैन सिद्धान्त के समस्त ग्रथ इसी वस्ति के एक बन्द कमरे मे रखे जाते थे। इसीसे इसका नाम सिद्धान्तबस्ति पड़ा। इसमें एक पाषाण पर चतुर्विंशति तीर्थड्रो की प्रतिमाए है। वीच मे पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है और उनके आसपास शेष तीर्थड्रो की । ४ दानशाले बस्ति यह छोटा-सा देवालय अक्कन बस्ति के द्वार के पास ही है। इसमे एक तीन फुट ऊँचे पाषाण पर पचपरमेष्ठी की प्रतिमाए है। यहाँ पहले दान दिया जाता रहा होगा। इसीसे यह नाम पड़ा है। ५ नगरजिनालय _इस भवन मे गर्भगृह, सुखनासि और नवरङ्ग है । इसमें आदिनाथ की प्रभावलिसयुक्त अढाई फुट ऊँची मूर्ति है । नवरग की वाईं ओर एक गुफा मे दो फुट ऊँची ब्रह्मदेव की मूर्ति है जिसके दायें हाथ मे कोई फल और वाये हाथ में कोडे के आकार की कोई चीज़ है। पैरो मे खड़ाऊँ है। पीठिका पर घोड़े का चिह्न बना हुआ है । नगर के महाजनो द्वारा ही इसकी रक्षा होती थी इसीसे इसका नाम नगरजिनालय पड़ा।
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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