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________________ ३४ श्रवगवेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ को इन्हें पूजने को वाध्य किया और तत्पश्चात् औरो ने भी भरत का अनुकरण किया। चामुण्डराय स्वय वीरमार्तण्ड थे, सुयोग्य सेनापति थे । अत उनके लिए महावाहु बाहुबली से वढ़कर दूसरा कोई आदर्श व्यक्ति न था। यही कारण है कि अन्य क्षत्रियो ने भी चामुण्डराय का अनुसरण करके कारकल और वेलूर में गोम्मटेश की मूर्तिया स्थापित कराई। गोम्मटेश्वर नाम क्यों पड़ा ? ' ___ अब प्रश्न हो सकता है कि बाहुबली की मूर्ति का नाम गोम्मट क्यो पड़ा? सस्कृत मे गोम्मट शब्द मन्मथ (कामदेव) का ही रूपान्तर है। इसलिए वाहुवली की मूर्तियां गोम्मट नाम से प्रख्यात हुई । इतना ही नही, वल्कि मूर्ति स्थापना के पश्चात् इस पुण्य कार्य की स्मृति को जीवित रखने के लिए सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्यप्रवर श्री नेमीचन्द्रजी ने चामुण्डराय का उल्लेख 'गोम्मटराय' के नाम से ही किया और अपने शिष्य चामुण्डराय के लिए रचे हुए 'पच सग्रह' ग्रन्थ का नाम उन्होने गोम्मटसार रखा। चामुण्डराय का घरू नाम भी गोम्मट था। इमलिए भी कहा जाता है कि मूर्ति का नाम गोम्मटेश्वर पडा। मूर्ति का आकार भगवान बाहुबली की इतनी उन्नत मूर्ति का नाप लेना कोई सरल पार्य नहीं है । सन् १८६५ में मैसूर के चीफ कमिश्नर श्री वोरिंग ने मूर्ति का ठीक-ठीक माप कराकर उसकी ठनाई ५७ फुट दर्ज की थी। सन् १८७१ ईस्वी में महामलकाभिषेक के नमय मैमूर के सरकारी अफसरो ने मति के निम्न माप लिये--
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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