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________________ मन्दिर और स्मारक मुनिवगाभ्युदय काव्य मे लिखा है कि गोम्मट की मूर्ति को राम और सीता लड्डा से लाए थे। वे इसका पूजन करते थे। जाते समय वे इस मूर्ति को उठाने में असमर्थ रहे इसीसे वे उन्हे इस स्थान पर छोड कर चले गए । उपर्युक्त प्रमाणो से यही विदित होता है कि इस मूर्ति की स्थापना चामुण्डराय ने ही कराई थी। ५७ फुट की मूर्ति खोद निकालने योग्य पाषाण कही और स्थान से लाकर इतने ऊचे पर्वत पर प्रतिष्ठित किया जाना वुद्धिगम्य नही है। इसी पहाड़ पर प्रकृति-प्रदत्त स्तम्भाकार चट्टान काट कर इस मूर्ति का निर्माण हुआ है। मूर्ति के सम्मुख का मण्डप नव सौन्दर्य स खचित छतो से सजा हुआ है। गोम्मटेश्वर की प्रतिष्ठा और उपासना वाहुबली चरित्र में गोम्मटेश्वर की प्रतिष्ठा का समय कल्कि संवत् ६०० मे विभवसवत्सर चैत्र शुक्ल ५ रविवार को कुम्भ लग्न, सौभाग्ययोग, मृगशिरा नक्षत्र लिखा है। विद्वानों ने इस सवत् की तिथि २३ मार्च सन् १०२८ निश्चित की है। प्रश्न हो सकता है कि बाहुबली की मूर्ति की उपासना कैसे प्रचलित हुई। इसका प्रथम कारण यह है कि इस अवसर्पिणी काल ये सवसे प्रथम भगवान ऋषभदेव से भी पहले मोक्ष जानेवाले क्षत्रिय वीर बाहुबली ही थे। इस युग के आदि मे इन्होने ही सर्वप्रथम मुक्ति-पथ प्रदर्शन किया । दूसरा कारण यह हो सकता है कि बाहुबली के अपूर्व त्याग, अलौकिक आत्मनिग्रह और निज वन्वु-प्रेम आदि असाधारण एव अमानुपिक गुणो ने सर्वप्रथम अपने बड़े भाई सम्राट् भरत
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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