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________________ ऐतिहासिक इतिवृत्त मनुष्यों के हृदय आनन्द से प्रफुल्लित हो गए । ऋषभदेव ने बालक्रीडा करते हुए अपनी माता और पिता के हृदयो को प्रमुदित किया । उनकी बुद्धि स्वाभाविक प्रतिभा से परिपूर्ण थी । उनमे चमत्कृत ज्ञानशक्ति और अद्भुत श्रुतविजता थी । उन्होंने किसी विद्यालय में विद्या पढे बिना ही विशिष्ट श्रुतज्ञान प्राप्त किया । भगवान के शरीर में क्रमश. यौवन ने प्रवेश किया । उनके वज्रमय शरीर में अतुलित बल था, किन्तु यह सब होते हुए भी उनके हृदय में विषय-वासना किंचित् भी जाग्रत नही थी, फिर भी उनके पिता नाभिराय ने प्रजा की सन्तति अविछिन्न रहने के लिए और धर्म की सन्तति वरावर चलती रहे इसलिए भगवान के समक्ष उनके विवाह का प्रस्ताव रखा, इस पर ऋषभदेव ने कर्मभूमि की स्थिति का विचार किया और यह सोचकर कि उनका अनुसरण करके प्रजाजन भी विवाह मार्ग मे प्रवृत्त होगे और उससे लोक में सुख-शाति की स्थापना होगी, अपनी अनुमति प्रदान कर दी । इनका विवाह महाराज कच्छ और महाकच्छ की अवर्णनीय रूप राशि से विभूषित दो बहिनो - यशस्वती और सुनन्दा - के साथ हुआ । इस प्रकार भगवान ऋषभदेव गृहस्थ मे रहते हुए सुख से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे । यथासमय महारानी यशस्वती (नदा) के निन्यानवे पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुई । द्वितीय रानी सुनन्दा की कुक्षि से कुमार बाहुवली तथा ब्राह्मी नाम की कन्या ने जन्म लिया । भरत इन सब भाइयो मे ज्येष्ठ थे । 7 -477 2
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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