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________________ ६ श्रवणबेलगोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ इसी नगर की दूसरी पहाडी विन्ध्यगिरि पर गग नरेश राचमल्ल के मत्री तथा सेनापति वीरमार्तण्ड चामुण्डराय ने वाहुबली की ५७ फुट ऊची विशाल मूर्ति उद्घाटित कराई। ____ श्रवणबेल्गोल का सबसे बड़ा महत्व वहा के ५०० के लगभग शिलालेखो मे है। इनमे लगभग १०० लेख साधुओ और गृहस्थो के समाधिमरण, लगभग १०० लेख मदिर-मूर्तिवाचनालय-परकोटा-सीढियो एव जीर्णोद्धार आदि, १०० लेख मन्दिरो की पूजा आदि के खर्च तथा १६० लेख सघो तथा यात्रियो के बारे मे और शेष ४० लेख के लगभग आचार्यो और योद्धाओ के सम्बन्ध मे है। ये शिलालेख इतिहास, साहित्य और काव्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। श्रवणबेल्गोल से जिन तीन महापुरुषो का सम्बन्ध है, उनका थोडा-सा जीवन वृत्तान्त यहाँ दे देना आवश्यक है। वे तीन महापुरुष (१)प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव की द्वितीय रानी सुनन्दा के पुत्र वाहुबली (२)सम्राट चन्द्रगुप्त (३)बाहुबली की मूर्ति के निर्माता वीरमार्तण्ड चामुण्डराय है। भगवान बाहुबली भरतक्षेत्र मे जब इस अवसर्पिणी का तृतीय कालचक्र समाप्त हो रहा था और भोगभूमि की रचना नष्ट होकर कर्मभूमि की व्यवस्था प्रारम्भ हो रही थी तब उस सध्याकाल मे अयोध्या में त्रैलोक्यवन्दनीय, महामहिमाशाली और अलौकिक विभूतिमय आदि तीर्थङ्कर भगवान ऋषभदेव ने जन्म लिया। उस समय मगलनाद से दिशाए गूज उठी और देवो तथा
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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