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________________ श्रवणबेलगोल और दक्षिण में वन्य जग-ती की भूमि अनेक मुनि-महात्मानो की तपस्या से पवित्र, अनेक धर्मनिष्ठ यात्रियो की भक्ति में पूजित और अनेक नरेगो तथा मम्राटो के दान से अलकृत और इतिहास में प्रनिद्ध हुई है। यद्यपि दक्षिण भारत में मैमूर गज्य प्राकृतिक सौन्दर्य में अपना विशेप स्थान रखता है, तो भी प्रकृति देवी ने जिस प्रकार श्रवणबेलगोल की भूमि को आलिंगन किया है, वैसा सौन्दर्य अन्यत्र देखने को नहीं भाता। इसे जैनबद्री तथा दक्षिण काशी भी कहते हैं और गोम्मटेश्वर की विगाल मूर्ति के कारण इसे गोम्मटपुर भी कहा जाता है। श्रवणबेलगोल आरसीकेरी स्टेशन से ४२ मील, हासन से ३१ मील, चिनार्यपट्टन से ८ मील, वेगलोर से १०० मील तथा मैसूर से ६२ मील है। यहा से एक सड़क जैनियो के पवित्र तीर्थ मलवद्री, हलेविड, वेणूर और कारकल को गई है। १२-५१' उत्तर अक्षाश और ७६°-२९ पूर्व रेखाश पर स्थित होने के कारण यहा की ऋतु सदैव ही जैन श्रमणो (मुनियो) के ज्ञान-ध्यान के लिए अनुकूल रही है। यहा की धार्मिकता इस स्थान के नाम मे ही गर्भित है। श्रमण नाम जैन मुनि का है, कन्नडी भाषा में 'बेल' का अर्थ श्वेत और 'गोल' का अर्थ सरोवर है । इसलिए श्रवणबेलगोल को जैन साधुओ का धवल सरोवर भी कहा जाता है। श्रवणवेल्गोल में लगभग ५०० शिलालेख जैन धर्म तथा उसके अनुयायिओ का गौरव प्रकट करते है। इनका अनुसन्धान सर्वप्रथम मैसूर पुरातत्व विभाग के डाइरेक्टर श्री राइस महोदय ने सन् १८८९ में किया था। इनके प्रकाशन
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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