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________________ ( ४ ) पिंड है. ये सब मिलके १०० योजन हुवे उसके नीचे ६०० जोजन का पोलाण है, उस पोलाण में व्यंतर देवों के असंख्य नगर हैं. सारा ती; लोक में असंख्य द्वीपों की नीचे व्यंतर देवों के असंख्य नगर रहे हुवे हैं. (८) प्रश्नः असंख्याता समुद्र के नीचे व्यंतर देवों के नगर हैं या नहीं ? उत्तरः नहीं हैं. लवण समुद्र सिवाय दूसरे सब समुद्र की गहराई १००० योजन सब जगह होती है, उस गहराई के १००० . . योजन में से १०० योजन त्रीला लोक में व १०० योजन अधोलोक में गिने जाते हैं ये हजार योजन के पीछे तुरंत ही पहिली नर्क का प्रथम पाथडा आता है. जिससे वहां पर व्यंतर के नगर नहीं होते हैं. (३) प्रश्नः वाणव्यंतर देवों के कितने भेद हैं ? उत्तरः सोलह. -१ पिशाच, २ खून, ३ यत, ४ राक्षस, ५ किन्नर, ६ किंपुरिस, ७ महोरग, ८ गंधर्व, ६ आणपनी, १०. पाणपन्नी, . ११ इसीवाई, १२ भुईवाई, १३ कंदीय, १४ महा कंदीय, १५ को हंड, १६ पयंगदेव. (७) प्रश्नः ज॑भका देव कितनी जात के हैं ? उत्तरः १०. -१ आभका, २ पाणभका, ल. . यण जंभका, ४ सयण जंभका, ५ वत्थ
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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