SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०) वक्त अन्यत्र विहार करके फिर उसी गांव में वे पधार सकते हैं. (२५) प्रश्नः साधु रास्ता में नीचुगे देख २ कर क्यों • चलते हैं ? . उत्तरः जीवजन्तु या वनस्पति आदि पैरके नीचे न आ जाय इस वास्ते. (२६) प्रश्नः अंधेरा में वे किस तरह चलें ? उत्तरः रजोहरण से जमीन की प्रमार्जना करके चले. (२७) प्रश्नः साधुत्व सहित मर कर जीव किस गति में उत्पन्न होते हैं ? उत्तर: देवगति में या मोक्ष गति में. -::. ||मकरण छट्ठा॥ सचेत अचेत की समझ ॥ (१) प्रश्नः साधु जल कैसा वापरते हैं ? उत्तरः अचेत याने जीव रहित. (२) प्रश्नः कुबा तलाव आदि के पानी कैसे होते हैं ? उत्तरः सचेत गाने जीवसहित. (३) प्रश्रः पानी की एकही बूंद में कितने जीव हैं ? उत्तरः असंख्याता. (४) प्रश्नः असंख्याता मायने क्या ? उत्तरः गिनती में नहीं अावे इतना. (५) प्रश्नः गिनती में आये तो उस्को क्या कहते हैं ? उत्तर: संख्याना. .
SR No.010487
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year1914
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy