SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Pho. (२) (8.) प्रश्नः लोक के चारों ओर क्या है? उत्तरः-अलोक. , . . (१०) प्रश्नः अलोक कितना वर उत्तरः-अनंत. ६११) प्रश्नः अनंत का अर्थ क्या है ? उत्तरः-जिसका अंत याने पार नही सो अनंत कहलाता है . (१२) प्रश्नः लोक बडा है या अलोक ? उत्तर:-अलोक. (१३) प्रश्नः अलोक में क्या क्या चीजें हैं ? उत्तरः....सीर्फ अाकाशं है और कुच्छ भी नहीं है, (१४) प्रश्न:-लोक और अलोक दोनो मिलकर ___ क्या कहलाता है । उत्तर:-लोकालोक. ॥ प्रकरण दूसरा ॥ पंच परमेष्टि की पहिचान । (१) प्रश्नः-लोकालोक संपूर्णतया कौन जान सक्ने हैं व देख सके है ? उत्तर:-परमेश्वर (२) प्रश्न: अपन यहां बात चीत करते हैं क्या पर मेश्वर वह जानता है ? उत्तर... हां वह सब कुच्छ जानता है. (३) प्रश्न:- सब कुच्छ जाने उसे क्या कहना चाहिये ?
SR No.010487
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year1914
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy