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________________ (२१) - निर्णयसागर में बहुलता से पाये जाते हैं इसलिये अपनी दृष्टिमें बहुत कम आते हैं, किन्तु यदि आप प्रकाशित तथा अप्रकाशित दोनोंको मिलाकर वैष्णव काव्योंसे तुलना करेंगे तो जैन 'काव्योंकी गणना किसी प्रकारसे मी कम नहीं हो सकती । . जैन महाकाव्य समुद्रके अन्दर जो विचित्र रत्न स्वरूप एकाक्षर वा द्वयाक्षर के C 'उपस्थित हैं, पाठकों को हम उन्होंका सिंहावलोकन कराते हैं । रोरोरा रैररैरेरी रोरो रोकररेररिः । रुरुरुरुरुरुरुरोरारारीरैकरोररम् ॥ (म० चंन्द्रपम ११ सर्ग) अर्थ-चिल्लाते हुए शत्रुके स्थागशील कुबेरको तिरस्कृत करनेवाले शत्रुको, चक्रोंके आक्षेप प्राप्त कर लिया ( अथवा चक्राक्षेपोंके द्वारा शत्रुका शत्रु स्वयं आगया । ) " ककाकुक के कांके किको कैफ ककः । ककुकौकः काककाकमका कुकुकका ङ्ककुः ( महा ० नेमिनिर्वाणं . ) अर्थात् देखिये विचित्र एकाक्षरसे समुद्रका कैंसा सुन्दर वर्णन किया है। कंकः किं कोeharकी किं काकः केकिकोऽककं । कोकः कुर्केककः कैकः कः केकाकाकुकांककं ॥ (महा० धर्मशर्माभ्युदय) अर्थ- चक्रवाक हंसके समान गमन करनेवाला वगुलाके व्याकार तथा मयू के समान स्वरूप धारण करनेवाले कौएके आकार, स्वर्ग, पृथ्वी जलमें अद्वितीय होकर कुटिकवासे मयूरके समान शरीरको समान मनाकर कुटिलतासे युद्ध करता मया । " गंगोरगगुरूग्रांग गौरगोगुरुरुग्रगुः । रागागारिंगरैरंगैरग्रेऽगं गुरुगीरगात् " ॥ ( धर्मशर्माभ्युदय ) अर्थ- गंगा, शेषनाग तथा हिमालय के समान गौर 'पाणीवाले बृहस्पति तथा प्रखर है ! प्रकाश जिनका ऐसे वृहस्पतिके समान गानसे महानांद के कारण विषके समान महानाद : : होता गया । ( अर्थात् जिस प्रकार शरीरको विष दुख देता है इस प्रकार कर्णौके लिये. कटुक नाद ) f रैरोsरिरीरुरूरारा रोरारारिरेरित ।. करूरो रुरूरारारुरुरुरुरुरेररूरः ॥ ( महाकाव्य द्विसंधान ) अर्थ - धन देनेवाले, और शत्रुओंके समूहको अच्छी तरहसे नष्ट करनेवाले शब्द . करनेवाले प्रतिविष्णु (श्री बलभद्र ) बड़े १ आरोंको शत्रुओंके प्रति प्रेरित करते गये और शुभ हृदयको घायल करते मये । यहां रामायण पक्ष में (द्वितीयार्थ ) घन देनेवाले, शत्रुओंके समूहको नष्ट करनेवाले,
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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