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________________ सुखदुःखके अनुभव आदि चतन्य शक्तिका विकाश नहीं है वे पदार्थ अचेतन हैं.. जिनको भड़ या अनीव मी कहते हैं । अस्तु । इन दो प्रकारोंको छोड़कर पदार्थोकी तीसरी और .. कोई नाति नहीं है । सभी पदार्थ इन्हीं दोनोंके अन्तर्भूत हैं। . . । किन्तु पदार्थोंकी ये जातियां भी जड़वादके इस मध्याहाकालमें कहना असमवस्त ' हो जाता है क्योंकि इस समय मनुष्योंका बहु माग इस सिद्धान्तको अटल तथा वास्तविक मान बैठा है कि "संसारमें केवल एक अनीव द्रव्य ही है। जिसको हम लोग जीव कहते वहमी जड़ द्रव्यकी पर्याय है" इसको सिद्ध करने के लिये वे प्रत्यक्ष, परोक्ष कई प्रकारके प्रमाण त्या दृष्टान्त उपस्थित करते हैं । अस्तु । ... कुछ मी हो । यहाँपर यह निश्चय नहीं किया जा संक्ता है कि विचारक व्यक्तियोकी अधिक संख्या नित मंतव्यको निश्चित करे वही मता यथार्थ होगा और सिद्धान्त भी यही हो सकेगा। क्योंकि संभव है कि वे सब भूलपर होवे और भेड़ियाघसानमें आकर उन मनुष्योकी संख्या बढ़ गई हो । और उसके विरूद्ध कहनेवाला थोड़े मनुष्यों का समुदाय ही लोक मार्गपर हो । क्योंकि परीक्षकों का मार्ग यद्यपि आनकल चौड़ा हो गया है किन्तु कपाय और पक्षपातका भाव अभी तक मनुष्योंके हृदयसे विदा नहीं हुआ है। अन्यथा आर्यसमान सरीखा कुतर्की जनसमुदाय मी 'सृष्टिकर्तृत्व' सरीखे स्थूल विषयपर न. उलझा रहता । अस्तु । इसलिये जब हमने अपना अनुपम तथा अमूल्य समय विचारने के लिये प्रदान कर दिया. है तब हमारा प्राथमिक कर्तव्य है कि हम इस कंटकको भी अलग कर दें अन्यथा आवागमनके प्रारम्ममें ही मक्षिका छींक देगी जिससे एक पैर मी. आगे न चल सकेंगे। ..... .: मड़वादको माननेवाले महाशय अपना सिद्धान्त इस प्रकार .जमाते हैं कि संसामें केवल जड़. द्रव्य ही है । जीव मी इन्हीं अचेतन द्रव्योंके संगसे उत्पन्न हो जाता है। .जगतमें पृथ्वी, जल, अग्नि, तथा वायु इन चार द्रव्योंके चार प्रकारके परमाणु मरे हुए हैं। उन्हीं परमाणुओंके परस्पर.मिल जानेपर जल, पृथ्वी भादि अनेक प्रकारके :पदार्थ बन जाते , है। जिस प्रकार गुड़, महुवा, धतूरा मांदिके मिलापसे गहरा नशा या वेहोशी लानेवाली ... मदिरा बन जाती है, उसी प्रकार पृथिवी, जल, अग्नि, वायु इन चार भूतके संयोग ..(मिनाप.) होनेसे चेतन शक्ति उत्पन्न हो जाती है निसको जीव कहते हैं। वास्तवमें जीव नामकं कोई पदार्थ अलग स्वतंत्र नहीं है.. इसलिये. संसार केवल जड़ पदार्थसे ही भरा है। " ये लोग इसी कारण ऐसा कहते हैं कि परलोक कोई वस्तु नहीं है। अस्तु । इस मतको युक्तिशून्य, असत्य सिद्ध करने के प्रथम उससे संबन्ध रखनेवाला कुछ विषय "कह देना आवश्यक होगा जो कि इस प्रकार है। ... . .
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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