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________________ (२८). अनादि सिद्ध है. तनुकरण मुवनादिक बनाने का निमित्त होनेसे, तनुकरण मुवनादि ईश्वर हेतुक हैं कार्य होनेसे, इस अनुमान मालासे वे. आत्माको सदा मुक्त सिद्ध करते हैं लेकिन जिप्त तरह मकानकी कमजोर नीव खुद ही नहीं गिरती है, बल्कि और अपने उपरके मकानको भी लेकर गिरती है. उसी तरह कार्यत्व हेतु असिद्ध होकर आत्माके कर्मरहितत्वका पतन करा देता है क्योंकि कार्यत्वका आपको क्या अर्थ अमीष्ट । १ स्वकारण सत्ता समवाय, २ अभूत्वामावित्व, ३ भक्रियादर्शिनोऽपिकृतबुद्धयुत्पादकत्व, ४ कारणान्तरानुविधायिन्य, इन चार विकल्पोंके और मी उत्तरविकल्प बहुतसे होते हैं। विशतया प्रमेयकमलमार्तण्डमें खण्डन किया है। यहां. लेख वृद्धिके भय से नहीं दिखा जाता है अतः प्रामाको अकर्मकतांकी सिद्धि नहीं होती। सांरूप मुक्तात्माको मुख रहित मानते हैं । पहिले इसका खंडन किया जा चुका है इसीलिए आचार्यने शुद्ध जीवके लक्षण प्रतिपादन करते समय शीतीभृत विशेषण दिया है। मस्करी मुक्त जीवका पुनः . आगमन मानते. इसीका निषेध करने के लिए आचार्यने निरञ्जन विशेषण दिया है । बुद्धः व योगानुमती आत्मको क्षणिक तथा निर्गुग मानता है इसीको निषेध करने के लिए आचार्य, नित्य विशेषण दिया है । ईश्वरवादी ईश्वरको कर्तृत्व मानते हैं इसके निषेत्र के लिए कृतकृत्य विशेषण दिया है। मण्डली : मतदाले भीवक्री हमेशह ऊर्ध्वगति ही मानते हैं इसके निषेवके लिए माचार्यने कोकान निवासी ऐसा विशेषण दिया है। . . ___ इस उक्त प्रकरणमें जीवकी सिद्धि परमतानुयायियोंके असत्य कसित कक्षणके खण्डन पूर्वक की गई है और आवश्यकता. मी बतलाई है। ... . M पुद्गलकी आवश्यकता और सिद्धिः भर अजीवका वर्णन क्रमप्राप्त हैं अतः उसका वर्णन करना चाहिये । . .. मजीवके पांच भेद हैं-१ पद्छ, २. धर्म, ३ अधर्म, आकाश, ९. काल | अब प्रत्येकका वर्णन कहते हैं। इन पांच भेदोंका. प्रथक् प्रयक, वर्णन करना ही अजीवका वर्णन होगा क्योंकि अवयवके वर्णनसे अवयवीका वर्णन हो जाता है. असे तना, शाखा, टहनी पत्ता आदि वृक्ष सम्बन्धी अवयों का वर्णन करना ही वृक्षका वर्णन है। ::.. पुदर देव्यका लक्षणः “स्पर्शरसगत्वर्णवन्तः पद्गलाः" ऐसा किया है। जो स्पर्श रस, गन्ध, वर्णसे सहित हो उसे पद्नच कहते हैं। .... . पूरयन्ति गलयन्ति इति पुद्गलाः यह पुदन शनकी निरुक्ति है। सादिकी निरुक्तिं निम्न प्रकार है । स्पृश्यते स्पर्शः, यानी जो छा जाय. उसी
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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