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________________ 1. (4) जैसे आत्मामें ज्ञानशक्ति है वह आत्मासे प्रथकू नहीं पाई जाती. या उप ज्ञानशक्तिसे आत्मा अलग नहीं पाई जा सकती । 1 } श्री नेमिचन्द्राचार्यने सूक्ष्मनिगोदिया मध्य पर्याप्तक जीवसे सबसे जघन्यज्ञानको पर्याय ज्ञान नामसे कहा है । यहां पर्याय समास, अक्षर, अक्षरसपास आदि में जैसे उनका ( पर्याय समासादिका ) आवरण उन्हींके ऊपर पड़ता है. यानी पर्याय समास ज्ञानावरण' पर्याय समास श्रुतज्ञानके ऊपर पड़ता है। अक्षर ज्ञानावरण अक्षर श्रुतज्ञानके ऊपर, अक्षर समास ज्ञानावरण अक्षर समास श्रुतज्ञान के ऊपर पड़ता है उसी तरह पर्याय ज्ञानका आवरण मी पर्याय श्रुतज्ञानके ऊपर पड़ना चाहिये, लेकिन ऐसा न होकर पर्यायज्ञान, पर्याय समासज्ञान इन दोनोंका आवरण पर्याय समाप्त श्रुतज्ञानके ऊपर ही पड़ता है इसका कारण यही है कि ज्ञानकी सबसे कम अवस्था है और उसपर आवरण पढ़नेसे आत्मा के ज्ञानवानपनेका ज्ञान कैसे हो सकेगा यही बात श्री जीवकाण्ड में प्रतिरादित है । वरि विसेसं जाणे सुहुम जहणणं तु. पज्जयं णाणं । पज्जाया वरणं पुण तदनंतर णाण भेदेहिं || अर्थ- सूक्ष्म निगोदिया ब्ध्यपर्याप्त रूके सर्व जघन्य ज्ञानको पर्यायज्ञान कहते हैं और पर्याय ज्ञानावरण पर्यायके बादमें कहे गये पर्याय समास ज्ञानके ऊपर पड़ता है और वह पर्याय ज्ञान इस गांषाके अनुसार सुमणि गोद अपज्जत यस्स जादस्य पदम समय म्हि | हवदि हुसव्व जहणणं णिचध्वाणं णिरावरणम् ॥ यानी - सुक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जो कि उत्पन्न होनेके प्रथम समय में ही है तब उसके ज्ञानको पर्याय ज्ञान कहते हैं वह आवरण रहित तथा नित्य ही प्रकाशमान रहता है इत्यादि इत्यादि । यह दृष्टान्तस्वरूप जो आत्मा उसके ज्ञान गुणकी भप्रयक् सिद्धि प्रसंगवश कहा गया है। अब दृष्टान्त स्वरूप आत्मामें ज्ञान जैसे अमिन्नत्वेन रहता है उसी प्रकार अनन्तगुण मी द्रव्यसे अभिन्न जानना चाहिये । i उक्त कथनसे यह बात सिद्ध की गई कि जो अ सद्रव्य लक्षणका है वही है । द्रव्यमें दो गुण रहते हैं । एक सामान्ये एक विशेष । सामान्य गुण उसे कहते हैं जो बहुतसी द्रव्योंमें एकसा पाया नाय जैसे सत्व अगुरुकचुलादि जो एक ही द्रपमें रहे
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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