SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उक्त कथनमें न के संक्षेप रीतिसे. भेद बताये हैं । एहि नयके दो भेद किये हैं फिर : द्रष्यार्थिकके २ और पायाधिकके दो भेद किये हैं : पुनः शास्त्रीय द्रव्यार्षिक नैगमादि. तीन भेद किये हैं और अध्यात्म द्रव्याकिंके कर्मोपाधि निरपेक्षादि १० भेद किये हैं। नैगमके तीन भेद किये हैं. और संग्रह तथा व्यवहारके दो दो किये हैं। शास्त्रीय पर्पयार्थिकके : ऋजुसूत्रादि १ भेद किये हैं..... .... . .. ' ऋजुसूत्रके दो भेद किये हैं तथा अध्यात्म पार्थिक ६ : अनादि नित्य पर्यायादि भेद किये हैं, यद्यपि नयके लिखनेका यहाँ विशेष प्रयोजन ही या लेकिन प्रसंगवश : कुछ लिखना पड़ा, अस्तु । ' : ' ......... ..पहले द्रव्यका लक्षण: कहा जा चुका है यहाँ. यह बतलाते हैं कि द्रव्यः लक्षणं का जो अर्थ है वही अर्थ शब्दान्तरों द्वारा " गुणपर्ययक्ष्यम् में कहा है यानी . हरएक पदार्थमें कोई न कोई शक्ति अवश्य होती है जैसे कि आत्मामें ज्ञान शक्ति, धर्ममें :. गतिहेतुस्व, अधर्ममें स्थितिहेतुत्व, आकाशमें अवगाहहेतुत्र, काउमें वर्तनःहेतृत्व, ये शक्तियां हैं। शक्ति गुणका पर्यायवाची शब्द है। द्रव्यमें अनन्त गुण होते हैं। यहां पर कोई : ऐसी.शंका करे कि द्रव्यमें रहनेवाला अनन्तगुणत्व वह द्रव्यसे अलंग-मी-दिखलाई देना चाहिये। आधेय रूप द्वारा निरूपित होनेसे, कुंड में दहीके समान, जैसे कि कुंडमें दही बाधेयरूपसे.. - अनुगत है अतः कुंडसे प्रषक भी पाया जाता है। द्रव्यमें अनन्त गुणत्व मी आधेवरूपसे निरूपित है अतः द्रव्यसे प्रथक् पाया जाना चाहिये। .. . . .. यह शंका ठीक नहीं है क्योंकि यहां जो आधार आधेयंता है उसका अर्थ युतं .. : सिद्ध पदार्थकी. आधार आधेयताके समान नहीं है । ..... ...... .. युत सिद्धका स्वरूप : लक्षण यही है कि जो प्रथक प्रथक् स्वाश्रय सिद्ध हो, जैसे.. कुंडमें दही, यहां कुंड और दहीमें गो आधार आधेयता है वह युतसिद्ध पदार्थोंकी आधार आधेयता कही जायगी क्योंकि कुंड अपने अवयवों (अंशों) में रहता है और दही. अपने : .. दहीके अवयवोंमें रहता है । तसिद्ध पदार्थोंमें चार अर्थोकी प्रतीति होती है कुंड २ कुरा घयव ३ दही ४ दहीके अवयवः। आयु तं सिद्ध पदार्थोंमें नो आधार आधेयता हैं वहां तीन ही पदार्थ पायें जाते हैं जैसे आत्मामें ज्ञान गुण अयुत सिद्ध है। यहां १ आत्मा २ आत्मावयव । ३ ज्ञान गुण अयुत सिद्धको लक्षण ऐशा है कि ययोः द्वयोर्मध्ये एकोऽपराश्रिमे - तिष्ठति तौ अयुतसिद्धौर जिन दो पदायों के बीच में एक अपराश्रित होता. वे दोनों आपसमें, : - अयुतसिंद्ध कहलाते हैं न कि अयुतसिद्ध पदार्थोंकी आधार आधेयता युतसिद्ध पदार्थोकी आधार आधे पतासे सर्वया भिन्न ही है तो युतसिद्धकी आधार आधेयतामें रहनेवाला गुणः । मा. दोष अयुतसिद्धकी आधार आधेयतामें कैसे आसकता है।
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy