SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) विषय १२० उत्तर-यह लेख भी तुम्हारे पक्षके हठ को सिद्ध . करता है क्योंकि निशीथ सत्र में तो मूर्तिपूजन का खण्डन किया है इस विषय का पाठ और अर्थ भी लिख दिया है। २२ प्र०-वलिकम्मा इसशब्दसे क्या मूर्तिपूजा सिद्धनहीं होती है ? उत्तर-सूत्रों में बलिकम्मा का अर्थ वलिकर्म । वल वृद्धि करने में स्नान विधि क्या सत्रकार ऐसे भ्रम जनक संदिग्ध पदोंसे मूर्ति पूजा कहते ? नहीं २ अवश्य सविस्तर लिस दिखलाते। १२४ २३ प्र०-ग्रन्थों में तो उक्त पूजादि सब विस्तार लिखे हैं उत्तर-इम ग्रन्थों के गपौडे, नही मानते हैं। प्र.-इसमें क्या प्रमाण है कि ३२सूत्र मानने और नियुक्ति प्रादि न मानने उत्तर-भली प्रकार से सूत्र शाख के प्रमाण से न मानना सिर करके ग्रन्थों के गपौडे और
SR No.010483
Book TitleSatyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherLalameharchandra Lakshmandas Shravak
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy