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________________ ७० संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की पग समाप्त किया है । गस्कृत शब्दानुशासन के उदाहरण द्यायय काव्य मे और प्राकृत शब्दानुशासन के उदाहरण प्राकृत याश्रय काव्य मे लिप है। ३ सस्कृत शब्दानुशासन के प्रथम अध्याय मे २४१ मूत्र, द्वितीय में ४६०, तृतीय मे ५२१, चतुर्थ मे ४८१, पचम मे ४६८, पप्ठ मे ६६२ और सप्तम में ६७३ सूत्र हे । कुल सूत्र सख्या ३५६६ है । प्रथम अध्याय के प्रथम पाद में मनाओ का विवेचन किया है। इसमे स्वर, तस्व, दीर्घ, प्लुत, नामी, समान, सन्ध्यक्षर, अनुस्वार, विसर्ग, व्यजन, घुट, वर्ग, अधोप, धोपवत्, अन्तथ शिट, 4 प्रथमादि, विभक्ति, पद, वाक्य, नाम, अव्यय, और मध्यावत् इन चौबीम का प्रतिपादन किया है। शिष्टायस्य द्वितीयो वा १४३१५६ द्वारा खणीरम, क्षीरम तथा अफ्सरा, अप्सरा जैसे शब्दो की सिद्धि प्रदर्शित की है। हिन्दी सार शब्द हेमचन्द्र के पीरम से बहुत नजदीक है । हेम ने इस प्रकरण मे व्यजन और विसर्ग इन दोनो मन्धियो का सम्मिलित रूप मे विवेचन किया है । इसके कुछ सूत्र व्यजन मधि के है तया कुछ विसर्ग के और आगे बढ़ने पर विसर्ग सन्धि के सूत्रो के पश्चात् पुन व्यजन गधि के सूत्रो पर लोट आते है और अन्त मे पुन विसर्ग सन्धि की वात बतलाने लगते है। सामान्य रूप से देखने पर एक गडवड झाला दिखलाई पडेगा, पर वास्तविकता यह है कि हेमचन्द्र ने व्यजन मधि के समान ही विसर्ग सन्धि को भी व्यजन सन्धि ही माना है, अत दोनो एक जातीय स्वरूप है। दूसरी बात यह है कि प्राय देखा जाता है कि व्यजन सन्धि के प्रसग मे आवश्यकतानुसार ही विमर्ग मन्धि के कार्य का समावेश हो जाया करता है। हेम विसर्ग को 'र" और "स" का प्रतिनिधि ही मानते है । प्रथम अध्याय के चतुर्य पाद मे कतिपय स्वरान्त और न्यजनात शब्दो का भी नियमन किया गया है। ४ द्वितीय अध्याय के प्रथम पाद मे अवशेप शब्द रूपो की चर्चा द्वितीय पाद मे कारक प्रकरण, तृतीय पाद मे पत्व-णत्व विधान और चतुर्थ पाद मे स्त्री प्रत्यय प्रकरण है। तृतीय अध्याय के प्रथम और द्वितीय पाद मे समास प्रकरण तथा तृतीय और चतुर्थ पाद मे आख्यान प्रकरण का ही नियमन किया गया है । पचम अध्याय के चारो पादो मे कृदन्त और ५०० तथा सप्तम अध्याय मे तद्धित प्रकरण सन्निविष्ट हैं। ५ यह पहले ही कहा जा चुका है कि हेम ने अपने पूर्ववर्ती समस्त व्याकरण शास्त्र का अध्ययन कर अपने शब्दानुशासन को सागपूर्ण और अद्वितीय बनाने का ५लाचनीय प्रयास किया है। अब यह विचार कर लेना भी आवश्यक है कि हेम मे अन्य व्याकरणो की अपेक्षा क्या वैशिष्ट्य है। ६ सर्वप्रथम पाणिनि और हेम की तुलना करने से ज्ञात होता है कि हम ना पाणिनि से बहुत कुछ लिया है, पर इस अवदान को मौलिक और नवीन रू५ मे ही उन्होने प्रस्तुत किया है। विचार करने से अवगत होता है कि सस्कृत के शब्द
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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