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________________ संस्कृत के जैन पौराणिक काव्यो की शब्द- सम्पत्ति ४४३ तथा विशिष्ट बन गये है जिनका उल्लेख इन सूचियो में रहता तो और अच्छा रहता । ऐसे अनेक शब्द है जो इन सूचियो मे स्थान प्राप्त करने से वञ्चित रह गये है, जिनका समावेश करके एक वृहत् सज्ञा शब्द सूची तैयार करने की आवश्यकत बनी हुई है। सज्ञा शब्दो के अतिरिक्त, भाषाशास्त्रीय और शैलीशास्त्रीय दृष्टि से, आख्यातपदो, निपातो, उपसर्गों तथा पदबन्धादिको की सूची की भी आवश्यकता है जिसके आधार पर शब्दावली का व्युत्पत्तिपरक और प्रवृत्तिपरक अध्ययन किया जा सके । किन्तु इतने पर भी इन पौराणिक काव्यो की शब्दावली के सम्वन्ध मे प० पन्नालाल जैन के कार्य का अपना महत्त्व है । जिज्ञासुओ के लिए ये परिशिष्ट अवलोकनीय और सहायक है । पुनरुक्ति से बचने के लिए हम, हरिवशपुराण, आदिपुराण और उत्तरपुराण की शब्दावली को न देकर, केवल 'पद्मपुराण' की विविध विषय-परक शब्दावली को ही प्रस्तुत कर रहे है । इस शब्द-सम्पत्ति को देखकर शब्द-मर्मज्ञो को रविपेण के विशाल 'लोक-शस्त्रिकाव्याद्यवेक्षण' का आभास मिल सकेगा । हरिवशपुराण तथा उत्तरपुराण के परिशिष्टो मे सकलित शब्द पद्मपुराण के उत्तरवर्ती है । हम अकारादिक्रम की उपेक्षा करते हुए विषयानुसार शब्दों की सूची उसी आनपूर्वी से दे रहे हे जिससे रविपेण ने उनका प्रयोग किया है | चूकि समस्त शब्दो का समावेश प्रस्तुत लेख मे नही हो सकता था अत अकारादिक्रम से शब्द सूची अधिक उपयोगी नही प्रतीत हुई । नाही परिमित स्थान मे सभी विपयो से सम्बद्ध शब्दो का उल्लेख किया जा सकता है, अत मुख्य विषयानुसारी शब्दसूची ही यहा दी जा रही है । उसमे भी प्रधानत संज्ञापदो एव कुछ विशेषणपदो को ही लिया गया है । इस लेख में इन शब्दों की निर्माणप्रक्रिया तथा अर्थवैभव का भी सकेत नही किया जा सकता, उसके लिए स्थानाधिक्य अपेक्षित है । वस्तुत यह लेख, उत्तरवर्ती पौराणिककाव्यत्तयो की शब्द के विद्यमान रहते, पूर्ववर्ती पौराणिक काव्य-पद्मपुराण की शब्द-सूची निर्माण की पूर्वपीठिका है । चारो ग्रन्थो की शब्दसूची बन जाने पर इनकी शब्दावली का तुलनात्मक अध्ययन करने मे कुछ सुविधा सभव होगी । 'पद्मपुराण' की शब्द-सम्पत्ति की चर्चा करते समय हमे ज्ञात होता है कि रविषेण ने समाज और जीवन के विशाल क्षेत्र से सम्बद्ध शब्दो का चयन किया है । रविषेण ने 'पद्मपुराण' मे राम (पद्म) की कथा कहने के बहाने समयानुसार समवसरण जिनेन्द्रमन्दिर, जिनपूजा, शास्त्रार्थ, जैनमुनि, धर्मकथन, पर्वे, क्षेत्र काल, अनेक नगर-नगरियो प्रकृति, नारी सौन्दर्य व्यापार-आलापो, पुरुष-सौन्दर्य वैभवव्यापारो, सम्भोग-क्रीडा, उत्सव आमोद, युद्ध, सेना, यात्रा, उपद्रव, शस्त्र, वाद्य, वेषभूषा, विरह-विलाप, पशु-पक्षी, शकुनापशकुन, यन्त्र, वाहन, नगरसमृद्धि,
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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