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________________ ४४० सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा (२२।११०), पादप्रक्षालनाकुण्ड (२२।११०), वीथी (२२।१११), जलखातिका (२२।१११), जिनजयोत्सव (२२।११५), प्रथम प्राकार (२२११२८), हिरण्मय निपध (२२।१२८), साल (२२।१२६), चकवालाद्रि (२२।१२६), उपरितल (२२।१३१), मौक्तिकावली (२२११३१), विद्रुममधात (२२११३२), परागाशु (२२।१३२), द्विपहरिव्याघ्ररूपमिथुन (२२।१३५), विचित्ररत्ननिर्माण-मनुष्य-मिथुन (२२।१३६), उपसर्पत्प्रतिध्वनि (२२।१३७), गोपुर (२२।१३६), भृगारकलशादि अष्टोत्तरशतमगलद्रव्यसम्पत् (२२।१४३), रत्नाभरणभाभारपरिपिंजरितावर तोरण (२२११४४), अनुतोरण उद्धद्धाभरण (२२११४५), खादिनवनिधि (२२।१४६), महावीथी (२२॥१४८), उभयभाग (२२।१४८), नाट्यशालाद्वय (२२।१४८), नाट्यमण्डपरग (२२११५१), सुरयोजित (२२।१५४), किन्नर (२२११५५), धूपघट (२२।१६२), वीप्यन्तर (२२।१६२), चतस्त्रो वनवीथय (२२३१६२), त्रिकोण चतुरस्त्रिका वापी (२२।१७४), स्तनकुकुम (२२।१७४), पुष्करिणी (२२११७५), कृतकादि (२२।१७५), हर्म्य (२२।१७५), आक्रीडमण्डप (२२।१७५), प्रेक्षागृह (२२।१७५), चित्रशाला (२२।१७६), एकशाला (२२।१७६), द्विशाला (२२११७६), महाप्रासादपक्ति (२२।१७६), वनचतुष्टय (२२।१७८), जम्बूद्वीप (२२।१८६), रणदालम्बिधण्टा (२२।१९२), भूर्भुवस्वर्जय (२२३१६२), ध्वजाशुक (२२११६३), मुक्तालम्वनभूषित छत्रनय (२२।१६४), नभाग (२२।१६५) जिनेश्वरप्रतिमा (२२।१६५), गधस्नग्धूपरीपार्धा (२२।१६६) नित्यार्चन (२२।१६६), क्षीरोदोदकवीतानी हिरण्मयी अर्हताम; (२२।१९७), पनवेविका (२२।२०५), घण्टाजाल (२२।२०६), अष्टमगल (२२।२१०), ध्वजपक्ति (२२।२११), संगीतातीचनृत्य (२२।२१०), रत्नाभरण तोरण (२२१२१०), ध्वजस्तम्भ (२२१२१२), मणिपी० (२२।२१२), अष्टाशीत्यगल-रुद्रित्व (२२१२१३), पञ्चविंशतिकोदण्डअन्तर (२२१२१३), सिद्धार्थ चैत्यवृक्ष (२२।२१४), प्राकारवनवेदिका (२२१२१४), स्तूप (२२।२१४), कतव (२२।२१४) तीर्यकृदुत्सेध (२२१२१५), दशभेदक ध्वज (२२।२१६), अष्टोत्तरशत केतन (२२।२२०), स्नध्वज (२२।२२२), ५लपणाशुकध्वज (२२।२२३), पहिध्वज (२२।२२४), पनवज (२२।२२५), हसध्वज (२२१२२८), गरुत्मध्वज (२२१२२६), विनायक (२२।२२६), मृगेन्द्रकेतन (२२।२३१), वषम (उक्षा) ध्वज (२२।२३३), इभ (गाजाधि५) ध्वज (२२।२३४), पक्रवज (२२।२३५), अशातियुक् महस्तध्वजा (२२१२३८), शून्य द्वित्रिकसागर ध्वज (२२।२३८), अर्जुन निर्माण द्वितीय साल (२२१२३६), कल्पभरुहवन (२२१२४६), दशप्रभेद कल्पतरु (२२।२४६), उदक्कु० (२२।२४६), ज्योतिक (२२।२४६), ज्योतिरङ्ग
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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