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________________ मंस्कृत के जैन पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पत्ति ४३६ प्रकान्त चारो पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पत्ति पर अभी तक थोडा ही कार्य हो पाया है । हरिवंशपुराण'° आदि पुराण' एव उत्तरपुराण'७२ के परिशिष्ट रूप मे सुधी सम्पादक प. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य ने पारिभाषिक, भौगोलिक, विशिष्ट तथा व्यक्तिवाचक समापदो की सूचियाँ दी है तथा उनके स्थानानुरोधी अर्थ भी दिये है किन्तु रविणकृत 'पद्मपुराण' के परिशिष्ट के रूप मे ये सूचिया नहीं दी गयी है। रविष्णक 'पद्मपुराण' की शब्दावली पर स्वतन्त्र रूप से कोई कार्य हमारे देखने मे नहीं आया है। इस दिशा मे इस लेख का लेखक 'रविषेणकृत पद्मपुराण की शब्दावली का परिशीलन' शीर्षक से कुछ विचार कर रहा है। _____१० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य के कार्य ने, नि सदेह, आगामी शोधाथियो के लिए एक मसृण मार्ग तयार कर दिया है। अकारादिक्रम से सूची बनाकर सज्ञा शब्दो का अर्थ दे देना अपने मे एक श्रमसाध्य कार्य है। किन्तु इस कार्य की अपनी कुछ सीमाएं हैं। ___उदाहरण के लिए 'आदिपुरा के दो स्थलो को हम लेते हैं। पहला स्थल वाईसवे पर्व से और दूसरा सोलहवे पर्व से उद्धत है। वाईसवे पर्व मे 'समवसरण' रचना से सम्बद्ध ये सज्ञा तथा विशेषण शब्द, प्रमुखत , प्रयुक्त हुए है --आस्थानमण्डल (२२१७५), शिलि (२२७६), आर०धपरायरचनाशत (२२१८६) (२२१७६), द्विपड्योजन विस्तार (२२।७७), हरिनोलमहारत्नघटित विलसत्तल (२२१७७), समवृत्त (२२।७८), मगलादर्श (२२।७८), पर्यन्तभूभाग (२२।८१), धूलीसाल (२२१८१), वलयाकृति (२२।८२), कटिसून (२२१८३), जिनास्थान भूमि (२२।८३),अजनपुजाभ(२२।८४), चामीकरच्छवि (२२।८४), विद्रुमसच्छाय (२२।८४), रत्नपामु (२२।८४), चन्द्रकान्तशिलाचूर्ण (२२।८६), मरकत (२२।८७), अ भोजराग (पद्मराग) (२२।८७), कलम्वित (२२१८७), हेमस्त मानलम्बिततोरण (२२६६१), मकारास्योट रत्नमाला (२२।६१), हाटक निर्मितमानस्तम्भ (२२।६२), चतुर्गापुरसबद्धसालतितयवेष्टित जगतीनाथस्नपनापवित्रित जगती (२२।६३), हेमपोडशसोपानस्वमध्यापितपीलिका (२२।९४), यस्तपुष्पोपहारा (२२१६४), नृसुरदानव (२२।६४), घण्टा (२२२६६), चामर (२२।६६), ध्वज (२२।६६), दिक्चतुष्टय (२२।६७), स्तम्भचतुष्टय (२२१६७), जिनानन्त चतुष्टय (२२।९७), हिरण्मयी जिनेन्द्र ाा (२२।६८), क्षीरोदा भोभिषेचन (२२।६८), नित्यातीयमहावाद्य (२२।६६) नित्यमगीतमगल (२२।६६), नित्यप्रवृत्तनृत्य (२२ ६६), पीठिका (२२।१००), निमेखल (२२।१००), पी० (२२११००), छत्तत्रय (२२।१०१), इन्द्रध्वज (२२११०१), प्रसन्नसलिला वापी (२२११०३), स्तन्मपर्यन्तभूभाग (२२।१०३), मणिसोपान (२२।१०७), स्फटिकोपतटी (२२।१०७), जैनेशजय (२२।१०८), जिनस्तोत्र (२२।१०६), नन्दोत्तरादिनाम
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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